मीडिया की सुर्खियों से दूर जेएनयू के एक और छात्र नेता झारखंड के गोड्डा से उतरे मैदान में

विशद कुमार

2019 का इस लोकसभा चुनाव में बिहार का बेगुसराय चर्चे में इसलिए है कि वहां से जेएनयू के छात्रसंघ के पूर्व अध्यक्ष कन्हैया कुमार सीपीआई के उम्मीदवार हैं। चर्चा इसलिए नहीं है कि वे सीपीआई के उम्मीदवार हैं बल्कि चर्चा इसलिए कि उनपर देश विरोधी नारा लगाने के आरोप रहे हैं और वे जेल की हवा भी खा चुके हैं, कि वे जाति के भूमिहार हैं और बेगुसराय भूमिहार बहुल क्षेत्र है। चर्चा है कि सीपीआई के उम्मीदवार होते हुए भी उन्हें भूमिहारों का समर्थन प्राप्त है, जबकि भाजपा ने पार्टी के बड़बोले नेता गिरिराज सिंह को मैदान में उतारा है, गिरिराज सिंह भी भूमिहार जाति से हैं और नवादा से सांसद रहे हैं। कन्हैया कुमार की जीत पर देश का प्रगतिशील और बौद्धिक तबका काफी आश्वस्त है।

इस बार गोड्डा, झारखण्ड से जेएनयू के छात्र नेता वीरेन्द्र कुमार दो बार के सांसद निशिकांत दुबे के खिलाफ चुनाव मैदान में.

एक दूसरी तस्वीर झारखंड में अडानी के लूट व सत्ता के दमन केन्द्र के रूप में चर्चित गोड्डा की है, जहां से जेएनयू के पूर्व छात्र नेता और सामाजिक आंदोलन के अगुआ वीरेन्द्र कुमार भी चुनावी मैदान में उतर रहे हैं। जहां पिछले दो बार से सांसद रहे निशिकांत दुबे की कारपोरेटी दबंगई चलती है, वहीं इस बार महागठबंधन के उम्मीदवार जेवीएम के प्रदीप यादव भी मैदान में हैं।

गोड्डा लोकसभा क्षेत्र से लम्बे समय से छात्र-आंदोलन व सामाजिक न्याय की लड़ाई से जुड़े हुए वर्तमान में जेएनयू के शोध छात्र वीरेंद्र कुमार को लोकसभा चुनाव में उतारने का फैसला झारखंड जनतान्त्रिक महासभा द्वारा लिया गया है। वे अति पिछड़ी जाति से आते हैं। वीरेंद्र कुमार लगभग डेढ़ दशक से छात्र-आंदोलन से जुड़े हुए हैं। छात्र-आंदोलन के क्रम में उन्होंने बीएचयू से जेएनयू तक की यात्रा की है। इस बीच कुछ वर्षों तक उन्होंने झारखंड के गोड्डा-दुमका इलाके में जनसंघर्षों को भी संगठित किया है। भूमि अधिग्रहण के खिलाफ कई एक लड़ाईयां लड़ी है। जेएनयू में सामाजिक न्याय के प्रश्नों पर लड़ते हुए लगातार दमन का मुकाबला किया है। निलंबन से लेकर आर्थिक दंड और मुकदमा तक को झेला है।

पिछले दिनों से उन्होंने झारखंड के जनसंघर्षों से जुड़े युवा साथियों के साथ झारखंड जनतान्त्रिक महासभा गठित कर साहसिक पहल कदमी शुरू की है। झारखंड के ज्वलंत प्रश्नों पर लंबी-लंबी पदयात्राएं की है। जिसमें जनसवाजो पर लगातार पहलकदमी ली गई है। जनता के पक्ष से ज्वलंत सवालों पर जोरदार राजनीतिक हस्तक्षेप किया गया है। अब वे जन राजनीतिक हस्तक्षेप को आगे बढ़ाते हुए गोड्डा लोकसभा में जनता के सवालों पर जनता के सामाजिक-राजनीतिक दावेदारी को बुलंद करने व जन राजनीतिक विकल्प पेश करने चुनाव मैदान में आ खड़े हुए हैं। बावजूद वे मीडिया के कैमरे की चमक उनतक नहीं पहुंच पाई है। वे मीडिया के लिए चेहरा नहीं बन पाए हैं। लेकिन संघर्ष की जमीन पर पांव टिकाए डटे हुए जरूर हैं।

वीरेन्द्र कुमार कहते हैं कि — यह चुनाव एक ऐसे समय में हो रहा है जब पिछले पाँच सालों से मोदी राज में एक तरह से अघोषित आपातकाल लगा हुआ है। पिछले पाँच सालों में हर रोज सामाजिक न्याय की हत्या हुई है इस देश में, लगातार मुसलमानों को गाय के नाम पर मॉब लिंच करके मार दिया गया है, लगातर आदिवासियों की जमीन छीनने का काम कॉरपोरेट घरानों के इशारों पर भाजपा नेतृत्व वाली सरकार कर रही है, देश के हरेक कोने में दलितों को सरेआम पिटा गया, महिलाओं का बलात्कर कर बर्बरतम हत्या इस भाजपा राज में आम बात हो गई, सरकारी नौकरियों तथा उच्च शिक्षा में पिछड़ों समेत सभी शोषित तबकों को लगातार बाहर करने का प्रयास किया गया, सरकार की गलत नीतियों के वजह से उत्पन्न कृषि संकट के कारण हजारों किसान आत्महत्या कर चुके हैं, मजदूरों के हक अधिकार देने वाले सारे कानून को खत्म कर शोषणकारी कानून लागू करने का काम मोदी सरकार ने किया है, नौजवानों को हर साल 2 करोड़ रोजगार देने का वादा करने वाले नरेंद्र मोदी के कॉरपोरेट परस्त नीतियों की वजह से हर साल लाखों नौजवान बेरोजगार हो गए, छात्रों का स्कॉलरशिप कम तथा खत्म कर दिया गया। संविधान द्वारा मिले आरक्षण पर लगातार हमला बढ़ा और इसे किसी भी तरह से खत्म करने का प्रयास भाजपा सरकार ने लगातार किया है। पिछले पाँच सालों में मोदी राज में लोकतंत्र और बाबा साहेब के द्वारा बनाये संविधान की लगातार हत्या होती रही है।

इसी सरकार के कार्यकाल में साथी रोहित वेमूला की सांस्थानिक हत्या होती है और किसी भी अपराधी को सजा नहीं मिलता है, इसी सरकार के कार्यकाल में हमारे जेएनयू के साथी नजीब को कैम्पस से ही दिन-दहाड़े गायब कर दिया जाता है और सरकार अभी तक नजीब को खोजने के बजाय एबीवीपी के इशारे पर तमाशा देखती रही, जम्मू-कश्मीर में छोटी बच्ची आसिफ का सामुहिक बलात्कर और उसके बाद उसकी बर्बरतम तरीके से हत्या कर दी जाती है, लेकिन सरकार खामोश रहती है।

देखते ही देखते सरकार ने संविधान के अंदर आरक्षण के मूल बुनियादी आधार को पलट कर या यूँ कहें संविधान की हत्या कर सवर्णों के लिए आर्थिक आधार पर 10% आरक्षण लागू कर अपने ब्राह्मणवादी होने का खुला परिचय दिया है, वहीं दूसरी तरह लाखों आदिवासियों को उनके ही जंगलों से बेदखल करने का आदेश आ जाता है और सरकार बेशर्मों की तरह चुप्पी साध लेती है। इन तमाम सवालों पर सरकार के खिलाफ बोलने, लिखने और लड़ने वालों को गोली मार देना, जेल में डाल देना तथा देशद्रोही करार देना इस सरकार के कार्यकाल में आम बात गई है।

अति पिछड़े और पसमांदा के प्रतिनिधित्व के नाम पर भाजपा तथा सारी विपक्षी पार्टियाँ हमेशा खामोश रही हैं।

इन सारे सवालों पर सदन के अंदर बैठा विपक्ष सरकार को घेरने में नाकाम रहा है, इन गलत नीतियों के विरोध में विपक्ष सड़कों से हमेशा गायब रहा है। सरकार के खिलाफ अगर किसी ने विपक्ष की भूमिका निभाई है तो वह है यहाँ की जनता और उसका जनआंदोलन। असली विपक्ष के रूप में इस देश और झारखंड राज्य के अंदर छात्र-नौजवान, मजदूर-किसान, आदिवासी, दलित, पिछड़े, अल्पसंख्यक, महिला तथा प्रगतशील बबुद्धिजीवी फासीवादी, ब्राह्मणवादी, पूंजीवादी, सामंती, भाजपा नेतृत्व वाली नरेंद्र मोदी सरकार के खिलाफ हमेशा सड़कों पर संघर्षरत रहे हैं।

झारखंड के अंदर लाखों की संख्या में कार्यरत अनुबन्धकर्मियों (पारा शिक्षक, आँगनबाड़ीकर्मी, जलसहिया, रसोईया, मनरेगाकर्मी, कृषि मित्र, बागवानी मित्र, पोषण सखी, ग्रामीण डाककर्मी, पारा स्वास्थ्यकर्मी एवं अन्य विभागों में कार्यरत अनुबन्धकर्मी) को बहुत कम मानदेय में सरकार काम करवा रही है। जब ये अनुबन्धकर्मी अपने जायज माँगों को लेकर सरकार के पास जाते हैं तो भजपा नेतृत्व वाली झारखंड सरकार इन अनुबन्धकर्मी साथियों को लाठी, आँसूगैस के गोले, और जेल उपहार स्वरूप देती है।

गोड्डा के अंदर अडानी कम्पनी को झारखंडियों-आदिवासियों को जमीन लूटने का खुली छूट झारखंड की रघुवर सरकार ने दे रखा है। लहलहाते फसलों को पॉवर प्लांट लगाने के नाम पर अडानी के गुंडों ने रौंद कर बर्बाद कर दिया। यह सब गोड्डा के अंदर अडानी की दलाली करने वाला क्षेत्र का  सांसद निशिकांत दूबे के इशारे पर हुआ।

वीरेंद्र आगे कहते हैं कि — वैसे मेरी उपस्थिति सामाजिक न्याय तथा जनता के आंदोलन का साथ झारखंड से लेकर दिल्ली तक हमेशा रहा है। लेकिन चुनावी राजनीति में ये चुनाव मेरे पूरे जीवन का पहला चुनाव है।

भाजपा नेतृत्व वाली सामाजिक न्याय विरोधी फासीवादी सरकार के खिलाफ तथा अडानी और इस तरह के बड़े-बड़े कॉरपोरेट घरानों के खिलाफ आंदोलन के मैदान में हमेशा लड़ता रहा, लेकिन इस बार चुनाव के मैदान में भी साम्प्रदायिक-सामंती ताकतों, भाजपा तथा फासीवादी नरेंद्र मोदी सरकार, अडानी और उसके दलालों के खिलाफ जनता के समर्थन और सहयोग से लड़ने के लिए तैयार हूँ।

हमारी लड़ाई गोड्डा लोकसभा क्षेत्र में अडानी और भाजपा के प्रत्याशी तथा अडानी के पैरोकार निशिकांत दूबे से है और उम्मीद करते हैं क्षेत्र की जनता के सहयोग से ये साम्प्रदायिक-फासीवादी-सामंती कॉरपोरेट के दलालों को परास्त करेगी।

हम इस चुनाव में जीते या हारे लेकिन सामाजिक न्याय के लिए, संविधान की रक्षा और लोकतंत्र को मजबूत करने के लिए, फासीवादी, साम्प्रदायिक, सामंती ताकतों तथा लूटेरी कॉरपोरेट घरानों के खिलाफ हमेशा सड़कों पर लड़ते रहेंगे।

विशद कुमार पेशे से पत्रकार हैं.

Related Articles

ISSN 2394-093X
418FansLike
783FollowersFollow
73,600SubscribersSubscribe

Latest Articles