हिंदू कोड बिल और डॉ. अंबेडकर


डॉ. अंबेडकर राजनीति के आकाशगंगा के ऐसे देदीप्यमान नक्षत्र हैं जिनकी छवि कालांतर में भी धूमिल नहीं हो सकती। सामाजिक न्याय के पुरोधा माने जाने वाले डॉ. अंबेडकर ने देश के सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक, शैक्षिक धार्मिक एवं संवैधानिक आदि क्षेत्रों में महत्वपूर्ण कार्य करते हुए राष्ट्र के निर्माण में अहम योगदान दिया।

आजादी के समय देश में संविधान निर्माण की अहम जिम्मेदारी मिलने के बाद डॉ. अंबेडकर ने पूरे राष्ट्र में जातिगत भेदभाव, छुआछूत का उन्मूलन कर सामाजिक क्रांति का बीजारोपण किया वहीं संविधान में स्त्री-पुरुष समानता, स्त्री अधिकार, सामाजिक न्याय, विश्व-बंधुता जैसे लोकतांत्रिक तत्वों की स्थापना पर बल दिया और संविधान के विभिन्न अनुच्छेद में उल्लेखित किया।

तात्कालिक समय में पूरे राष्ट्र में स्त्रियों की दशा में सुधार हेतु हिंदू कोड बिल का मसौदा तैयार करने का क्रांतिकारी कार्य किया क्योंकि भारतीय समाज में स्त्रियां अपने संवैधानिक अधिकार से वंचित थी। भारत में स्त्रियों की दयनीय स्थिति केलिए मनुस्मृति जैसे साहित्य तथा अधिकांश रूढ़ीवादी सोच के लोगों का विद्यमान होना था।

मनुस्मृति के द्वारा भारतीय समाज में अछूत और स्त्री को शिक्षा, संपत्ति और समानता के अधिकारों से वंचित करने के लिए कुचक्र रचा गया।मनुस्मृति के द्वारा ही वैदिक काल में स्त्री को हासिल स्वतंत्रता, सम्मान, ज्ञानप्राप्ति का अधिकार, संपत्ति में अधिकार, पुनर्विवाह का अधिकार, स्वयंवर का अधिकार आदि पर रोक लगाया गया। स्त्रियों को समानता, स्वाधीनता और आत्मबोध जैसे प्राकृतिक हक से वंचित कर दिया गया।फलस्वरुप स्त्रियां भोग विलास का साधन बनकर रह गई।स्त्रियों की दयनीय स्थिति के प्रति भारतीय हिंदू समाज कभी चिंतित नहीं दिखा।

डॉ. अंबेडकर ने अपने दूरदृष्टि एवं सकारात्मक सोच के द्वारा भारतीय नारी की दयनीय स्थिति के कारणों का अवलोकन किया तथा उनके सामाजिक पतन के सभी प्रमुख कारकों का पता लगाया और व्यापक शोध एवं अध्ययन के बाद हिंदू नारी का उत्थान और पतन नामक किताब में वर्णित वैदिक युग में नारी की स्थिति का हवाला देते हुए जनमानस को तात्कालिक समाज की नारी की स्थिति से अवगत कराया। डॉ. अंबेडकर ने इस बात पर जोर दिया कि वर्तमान समय की नारी की सामाजिक अवनति से ही समाज भी पतन की स्थिति में पहुंच गया। डॉ. अंबेडकर ने मनुस्मृति के नारी विरोधी कारणों का हवाला देते हुए कहा कि बौद्ध धर्म के समता, स्वतंत्रता और न्याय दर्शन से प्रभावित होकर समाज के शूद्र, अति शूद्र और नारीको द्वारा बौद्ध धर्म अपनाया जाना प्रमुख है।

मनु ने इस हिंदू धर्म के प्रचार प्रसार केलिए शूद्र-अतिशूद्र एवं नारी को शिक्षा से वंचित किया तथा धर्म आदेश तोड़ने पर प्राण दंड, जीव्हा काटना, कान और मुख में पिघला सीसा भरने तथा पागल कुत्तों से स्त्री के अंग अंग नोचवाने जैसे घ्रणित दंड का विधान रखा। इन अभिशापो के निराकरण केलिए डॉ. अंबेडकर ने संविधान के प्रारूप समिति के अध्यक्ष के रूप में संविधान में स्त्रियों को समानता का अधिकार प्रदान कर सामाजिक कलंक को मिटाने का प्रयास किया।

वस्तुतः हिंदी कोड बिल यथार्थ रूप से भारतीय स्त्री को मुक्ति दिलानेवाला संवैधानिक कानून था।तात्कालिक समाज में स्त्रियों की दयनीय स्थिति, शोषण एवं पीड़ा को महसूस करते हुए महात्मा फुले की धर्मसंगिनी सावित्री फुले ने कहा था “राख ही जलने का दर्द जानती है” और नारी उत्थान के अनेक सराहनीय प्रयास किए। बाद में डॉ. अंबेडकर ने अपनी प्रगतिशील सोच एवं विचारधारा को अमल में लाते हुए नारी उत्थान के प्रयास हेतु भारतीय संविधान में स्त्रियों के हक के लिए कानूनी मसौदा तैयार किया। डॉ. अंबेडकर का मुख्य लक्ष्य समाज के दलित वंचित एवं हाशिए पर जीवन यापन करनेवाले गरीब, स्त्री-समुदाय तथा अन्य शोषित वर्गों को संवैधानिक अधिकार दिलाना एवं उनके हितों की रक्षा करना था।

संविधान के अनुच्छेद 15 (1) के तहत कोई भी राज्य अपने नागरिकों के बीच मूलवंश, धर्म, जाति, लिंग, जन्म, स्थान के आधार पर किसी प्रकार का विभेदन ही करेगा। 15 (2) सभी नागरिक चाहे वह स्त्री अथवा पुरुष हो सार्वजनिक स्थान पर आवागमन कर सकते हैं और उस क्षेत्र का इस्तेमाल कर सकते हैं। 16 (2) के अनुसार सरकारी क्षेत्र के सभी उपक्रमों में नौकरी के लिए पुरुष और महिला को समान अधिकार प्राप्त है। 19 (1) के अनुसार नारी को विविध स्वतंत्रता का अधिकार प्राप्त है।

हिंदू कोड बिल का प्रारूप तैयार करना डॉ. अंबेडकर द्वारा उठाए गए सर्वश्रेष्ठ क्रांतिकारी कदमों में से एक था जो कानूनी रूप से स्त्रियों के मान सम्मान की रक्षा करने वाला तथा सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक अधिकार दिलाने वाला था। इस बिल के द्वारा बाल विवाह जैसे सामाजिक कलंक पर प्रतिबंध, अपनी स्वेच्छा से जीवन साथी चुनने का अधिकार, अन्तर्जातीय विवाह का अधिकार, संपत्ति पर बराबर का हक, तलाक का अधिकार, गोद लेने और संरक्षकता के अधिकार का प्रावधान किया गया था।

डॉ.  अंबेडकर ने अपने दूर दृष्टि एवं सकारात्मक सोच से स्त्रियों के मान सम्मान की रक्षा हेतु यह क्रांतिकारी बिल सदन में प्रस्तुत कर एवं संसद में सर्वानुमति से पास कराने में कोई कसर नहीं छोड़ी, लेकिन देश आजादी पसंद कुछ रूढ़ीवादी तथा दक्षिणपंथी विचारधारा के लोगों ने इसका भरपूर विरोध किया। विरोध का सर्व प्रमुख एवं तात्कालिक कारण हिंदू परिवार के टूटने का अंदेशा समझा गया। सांसद नजरूद्दीन अहमद और श्यामाप्रसाद मुखर्जी जैसे दक्षिण पंथी विचारधारा के लोगों के लिए यह बिल्कुल भी मंजूर नहीं था कुछ और प्रमुख गणमान्य सांसदों में जो हिंदू कोड बिल के मुखर विरोधी थे उन में श्यामनंदन सहाय तथा बाबू रामनारायण सिंह आदि प्रमुख थे।

इन विरोधों के फलस्वरुप तथा सांसदों के निराशापूर्ण रवैये से आहत होकर 10 अक्टूबर 1951 को डॉ. भीमराव अंबेडकर नेअपने पद से त्याग पत्र दे दिया।

बाद में 1955-56 ई. में हिंदू कोड बिल को चार भागों में विभक्त कर टुकड़ों टुकड़ों में पारित किया गया, जो इस प्रकार है–

  1. हिंदू विवाह विषयक विधि-1955
  2. हिंदू उत्तराधिकार कानून- 1956
  3. हिंदू दत्तक ग्रहण तथा भरण-पोषण कानून- 1956 एवं
  4. हिंदू अप्राप्तवयता औरसंरक्षकता का कानून-1956

इन कानूनों के लागू होने से हिंदू धर्म के अंदर व्याप्त सामाजिक कुरीतियों का अंत हुआ। नारी को  पैत्रक तथा पति की संपत्ति में, अन्तर्जातीय विवाह का, दत्तक संतान एवं भरण पोषण का अधिकार मिला। हिंदू कोड बिल जैसे प्रगतिशील एवं अर्वाचीन कानून का प्रारूप तैयार कर प्रखर विरोध के बावजूद संसद में प्रस्तुत करने के दृढ़ संकल्प एवं क्रांतिकारी दृष्टिकोण के कारण ही डॉ. अंबेडकर को स्त्री मुक्ति का योद्धा कहा जाता है।

वास्तव में डॉ. अंबेडकर स्त्री अस्मिता की रक्षा एवं उसकी गरिमा को स्थापित करने वाले सच्चे नायक थे।

                 

संदर्भ सूची

डॉ. अंबेडकर व्यक्तित्व एवं कृतित्व -डॉ. डी. आर. जाटव-समता साहित्य सदन, जयपुर।

डॉ. अंबेडकर संपूर्ण वांग्मय- डॉ. बाबा साहेब, प्रकाशनविभाग, नईदिल्ली।

अंबेडकर की राजनीतिक सोच एवं विचार- आशुतोष मुखर्जी-रावत प्रकाशन, दरियागंज, नईदिल्ली।

दलित साहित्य और चिंतन धारा- इग्नू मानविकी विद्यापीठ।

गूगल,विकीपीडिया डॉ.भीमरावअंबेडकर

लेखक कौशल कुमार पटेल जैन विश्वविद्यालय में हिंदी के शोधार्थी हैं.

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