एक युवा फिल्मकार की दस्तक: मंजिलें अभी शेष है!

चन्द्रकांता

‘ओवर-दी-टॉप’ प्लेटफॉर्म एक ऐसा मंच है जिसने मुख्यधारा के ‘स्टारडम’ का वर्चस्व तोड़ा है और नई पीढ़ी को अपना हुनर दिखाने के लिए एक बड़ा स्पेस दिया है। इसके तहत टी.वी संचार और ब्रॉडकास्टिंग के प्रचलित साधनों की जगह सीधे इंटरनेट या यूटयूब जैसे मंचों पर अपना फ़िल्म कंटेंट जारी कर दिया जाता है। इसके अपने खतरे भी हैं लेकिन इनका लाभ यह हुआ है कि दर्शकों को कंटेंट की विविधता और अभिनय की एक बड़ी रेंज देखने को मिल रही है।

‘तस्वीरें’ युवा निर्देशक पावेल सिंह की पहली शार्ट फ़िल्म है। यह फ़िल्म 4 मई 2019 को यूट्यूब पर रिलीज़ हुई है। व्हाइट फायर प्रोडक्शन और दी रेड रेनबो स्टूडियोज़ की इस फ़िल्म की पटकथा भी पावेल ने लिखी है। फ़िल्म का प्लॉट प्रकाशक और लेखक के संबंधों के इर्द गिर्द बुना गया है। यह विषय अपने आप में अनूठा और साहसिक है। इससे पहले वर्ष 1973 में आई राजेंद्र सिंह बेदी की फ़िल्म फ़ागुन में एक बहुत संक्षिप्त सा खाका प्रकाशक और लेखक के संबंधों को लेकर खींचा गया था।

‘तस्वीरें’ आपको बताती है कि बाज़ार की मुनाफ़ा व्यवस्था किस तरह एक संवेदनशील लेखक को प्रकाशक के हाथों की कठपुतली बना देती है। यदि वह लेखक स्त्री है तब उसे और भी कई तरह के समझौते करने पड़ सकते हैं। किसी किताब का लिखा जाना, छपना और उसका पाठकों तक पहुंचना इसके पीछे व्यवस्था का एक पूरा गणित काम करता है।

फिल्म की शुरुआत होती है दिल्ली के सिविल लाइंस से जहां अरविंद ( सिद्धिविनायक सिंह ) नाम का लेखक दफ़्तर के बाहर प्रकाशक ( गुरिंदर आज़ाद ) का इंतजार कर रहा है। प्रकाशक दिल्ली के कभी न खत्म होने वाले जाम में फंसा है। वह गाड़ी में बैठा है और फोन पर वैदेही नाम की किसी महिला लेखक से बातचीत में व्यस्त है। दोनों की बातचीत से मालूम पड़ता है की महिला लेखक को अपनी कहानी छपवानी है । लेकिन क्योंकि बाज़ार में कुछ भी मुफ़्त नहीं मिलता इसलिए केवल लेखन से बात नहीं बनेगी महिला को ‘कुछ और’ भी देना होगा। प्रकाशक का एक संवाद देखिये –

“अरे मोहतरमा ! आप तो पहुंची हुई लेखिका हैं .. आपको तो सब पता है, क्या देना है, और वो भी कितना.. और वो भी कब… हरिओSम …. ” !!!

देखें फिल्म

अपने ऐतिहासिक स्वरूप में पूंजीवाद ने हमें स्त्री की मुक्ति का स्वप्न दिखाया । पूंजीवाद की परिणीति बाज़ारवाद में हुई और पूंजी व बाज़ार ने मिलकर एक ऐसी व्यवस्था को जन्म दिया जहां स्त्री एक वस्तु से अधिक कोई महत्व नहीं रखती।

बहरहाल, कहानी इस सौदेबाजी से आगे बढ़ती है एक युवा लेखक अरविंद अपनी नई कहानी ‘तस्वीरें’ लेकर प्रकाशक के दफ़्तर पहुंचता है । प्रकाशक उसकी कहानी को सुनने में कोई खास रुचि नहीं दिखाता लेकिन अपने अहम को तुष्ट करने के लिए वह बार बार कहानी में हस्तक्षेप करता है और बाज़ार के अनुरूप कहानी में बदलाव की मांग करता है । बाज़ारवाद ने लेखक के सामने ऐसी स्थिति पैदा कर दी है जहाँ या तो वह भूखा मरे या फिर तड़का मारकर बाज़ार के स्स्वादानुसार लिखे। परजीवी प्रकाशक को इसी बाज़ार का दंभ है । एक जगह प्रकाशक कहता भी है –

‘हम ही तो बनाते हैं अरविंद को अरविंद’ … वरना तो सड़कों पर सैकड़ों अरविंद घूम रहे हैं … सभी अरविंद हैं .. साSSला सब बराबर हैं ।

प्रकाशक के लिए अरविंद का महत्व केवल इतना है कि वह फेमस है । खैर, अरविंद अपनी कहानी के मुख्य किरदार नयन के नज़रिए से कहानी सुनाना शुरू करता है।

नयन (सागर शर्मा) एक आत्मकेंद्रित किस्म का व्यक्ति है वह किसी की परवाह नहीं करता उसका अधिकांश समय फोन पर व्यतीत होता है । वामिका (अनुष्का शर्मा ) नयन की प्रेमिका है । दोनों एक कैफ़े में मिलते हैं जहाँ नयन लगातार अपने फोन में व्यस्त  है और वामिका की बातों की तरफ उसका कोई ध्यान नहीं होता । यह फ़िल्म का एक महत्वपूर्ण दृश्य है जो वर्तमान पीढ़ी के रिश्तों में आए तनाव की परतें उधेड़ता है। आज हमारी संवेदनाओं पर तकनीक हावी हो गई है। गैजेट्स, फोन और सोशल मीडिया ने हमारी जिंदगी और आपसी संबंधों में एक बड़ा अंतराल पैदा कर दिया है। नयन के रूखे रवैये को देखकर वामिका कहती है –

‘तुम किसी के भी नहीं हो नयन .. तुम खुद के भी नहीं हो।’

इतना कहकर वामिका कैफ़े से चली जाती है। नयन को यह अहसास होता है कि उसने वामिका की कही यह बात पहले भी कहीं सुनी है। यहां से कहानी में जैनाब का आगमन होता है। जैनाब नयन के बचपन की मित्र थी। दोनों एक ही स्कूल में थे और अच्छे दोस्त थे। एक दिन नयन के पिता का ट्रांसफर हो जाता है और जैनाब और नयन अलग हो जाते हैं। जैनाब को इस बात से ठेस पहुंचती है कि नयन को उन दोनों के बिछड़ जाने की बात से कोई फर्क नहीं पड़ा। इस बात के लिए जैनाब उसे कहती है –

‘तुम किसी के नहीं हो सकते’।

हालांकि सातवीं कक्षा में इस तरह की बात किसी बच्चे के मुंह से सुनना थोड़ा अजीब सा लगता है । फ़िल्म का लेखक जैनाब के किरदार को लेकर बहुत स्पष्ट नहीं दिखाई पड़ता।

इधर एक तरफ नयन जैनाब को लेकर परेशान है और दूसरी तरफ उसे वामिका के मैसेज आ रहे हैं। बहुत खोजबीन के बाद नयन को मालूम पड़ता है की जैनाब वैभव शर्मा को पसंद करने लगी थी । स्कूल के दिनों में वैभव और नयन के बीच अक्सर लड़ाई झगड़े होते थे। अचानक वैभव जैनाब से बातचीत बंद कर देता है और एक दूसरी लड़की के साथ मित्रता कर लेता है। वह जैनाब को अपनी नई प्रेमिका के सामने अपमानित करता है। परिवार में रोज़ाना के झगड़े और वैभव के इस धोखे को जैनाब सहन नहीं कर पाती और आत्महत्या कर लेती है। नयन वैभव को मिलने बुलाता है और शराब की बोतल उसके सिर पर दे मारता है। तो यह थीं फ़िल्म की अलग अलग तस्वीरें जो निर्देशक ने खींची हैं।

फ़िल्म में संकेतों का बहुत अच्छा प्रयोग किया गया है। फ़िल्म में महिला किरदारों के नाम का चुनाव सोच समझकर किया गया है। वैदेही (सीता), वामिका (चंडिका, दुर्गा या शक्ति का स्वरुप ), जैनाब (सुंदर/कीमती/महकता हुआ) आदि नाम दिलचस्प हैं और कहानी से जुड़े हुए भी हैं। इसके अलावा प्रकाशक का अपनी बात खत्म करते वक़्त ‘हरिओssम’ कहना और एक संवाद बोलते हुए अरविंद का टेबल पर हाथ रखकर पैंसिल के दो किनारों को हिलाना ऐसे ही संकेत है। संकेतों और प्रतीकों के माध्यम से अपनी बात रखना आपके विचारों की मजबूती को दर्शाता है ।

‘तस्वीरें’ कहानी का प्लॉट तो मजबूत है लेकिन पटकथा थोड़ी कमजोर है। कहानी के अलग-अलग हिस्से जब आपस में जुड़ते हैं तो उनमें तारतम्य की कमी नजर आती है। कहानी में कुछ त्रुटियां हैं जो नहीं होनी चाहिए थीं जैसे कैफ़े छोड़कर वामिका जाती है। लेकिन बाद में एक जगह बताया गया है की नयन कैफ़े छोड़कर गया। पार्क में शराब वाले दृश्य पर आकर फ़िल्म स्लो हो जाती है ।इसके अलावा संवादों पर और काम किया जाना चाहिए था।

अनुष्का शर्मा (वामिका) इस फ़िल्म की उपलब्धि हैं उनका काम बेहतरीन है । कैमरे को लेकर वह सहज दिखीं। सागर शर्मा (नयन) का काम भी अच्छा है। मुख्य पात्रों में सिद्धिविनायक और गुरिंदर आज़ाद का काम औसत है। फ़िल्म का बैकग्राउंड स्कोर और DOP काफी बेहतरीन है और प्रभावित करता है। यह फ़िल्म का यू.एस. पी. है।

अंत में, क्रिटिक लिखना एक बात है लेकिन ‘तस्वीरें’ की पूरी टीम ने जो मेहनत की है वह स्क्रीन पर आपको दिखती है। कुल मिलाकर यह एक अच्छा प्रयास है खासकर फ़िल्म का कैमरा वर्क। काम जारी रहे, आप लोगों की मेहनत रंग जरूर लाएगी। इस फ़िल्म से जुड़े सभी लोगों को भविष्य के लिए खूब शुभकामनाएं ️️।

चंद्रकांता

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