राजलक्ष्मी
एक पति अपनी पत्नी का बलात्कार कैसे कर सकता है? वैवाहिक बलात्कार की जब भी बात होती है तो यह सवाल तुरंत पूछा जाता है। साधारण शब्दों में कहें तो वैवाहिक बलात्कार का अर्थ है अपनी जीवनसाथी की सहमति के बिना बनाया गया यौन संबंध। यानि वैवाहिक रिश्ते में जीवनसाथी की सहमति लिये बिना या फिर धमकी, शारीरिक या मानसिक हिंसा का सहारा लेकर बनाए गए यौन संबंध वैवाहिक बलात्कार है। दुनिया के कई देशों ने अपने कानून और बलात्कार की परिभाषा में बदलाव करते हुए वैबाहिक बलात्कार को अपराध की श्रेणी में रखा है। भारत में वैवाहिक बलात्कार अभी भी अपराध की श्रेणी से बाहर है। भारतीय कानून केवल 18 वर्ष से कम उम्र की विवाहित महिलाओं के साथ यौन संबंध को बलात्कार मानता है। हालांकि 18 वर्ष से कम उम्र की विवाहित महिलाओं को यह छूट नाबालिग होने व पोस्को एक्ट की वजह से मिलता है। बलात्कार से संबंधित भारतीय दंड संहिता की धारा 375 व 376 में केवल 15 वर्ष से कम आयु की विवाहित महिलाओं के साथ यौन संबंध को बलात्कार माना गया है। वैवाहिक बलात्कार के कई पहलू हैं। इसमें वैवाहिक संबंधों में पुरुषों द्वारा महिलाओं का शारीरिक, यौन व मानसिक शोषण व हिंसा महत्वपूर्ण पहलू है। भारतीय समाज में पुरुषों द्वारा इस तरह की हिंसा को लगभग जायज माना जाता है। इसे अपराध की श्रेणी में नहीं रखने की वजह से सरकारी तौर पर इस तरह की घटनाओं का कोई ब्यौरा नहीं रखा जाता। लेकिन दूसरे अन्य सामाजिक-पारिवारिक अध्ययन भारतीय समाज में बड़े पैमाने पर वैवाहिक बलात्कार व यौन हिंसा की घटनाओं को उजागर करते हैं।
वैवाहिक बलात्कार व महिलाओं के साथ होनी वाली यौन हिंसा से संबंधित इस अध्ययन में अखिल भारतीय स्तर पर इस तरह की घटनाओं का विश्लेषण किया गया है। साथ ही महाराष्ट्र के वर्धा जिले में वैवाहिक बलात्कार व यौन हिंसा की शिकार महिलाओं का विशेष अध्ययन पेश है। यह शोध महिलाओं को गरीमामयी जीवन के मूल अधिकार के लिए वैवाहिक बलात्कार को अपराध की श्रेणी में रखने की वकालत करता है।
वैवाहिक बलात्कार की घटनाएं
वैवाहिक बलात्कार या विवाहित महिलाओं का पतियों द्वारा यौन शोषण को कानूनी तौर पर अपराध की श्रेणी में नहीं मानने की वजह से इससे जुड़ी घटनाओं का सही आंकड़ा पता लगा पाना मुश्किल है। लेकिन राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस-4) के 2015-16 के आंकड़ों से भारतीय पुरुषों की मानसिकता की एक झलक देखी जा सकती है। सर्वेक्षण के आंकड़े बताते हैं कि पुरुष यौन संबंधों के लिए पत्नी की सहमति को जरूरी नहीं मानते हैं। वह पत्नी द्वारा यौन संबंध से इंकार करने पर उसे शारीरिक, मानसिक या आर्थिक प्रताड़ना का सही मानते हैं। सर्वेक्षण के अनुसार भारत में हर 100 में से 9 पुरुष यह मानते हैं कि अगर पत्नी सेक्स से इंकार करे तो पति को यह अधिकार है कि वह उसके खिलाफ ताकत का इस्तेमाल करे। ऐसा मानने वाले पुरुषों की संख्या आंध्र् प्रदेश में 28.5 प्रतिशत, तेलंगाना में 25.6 प्रतिशत, मिजोरम में 19.3, त्रिपुरा में 17.9 और जम्मू-क्श्मीर में 14.8 प्रतिशत है।
सर्वे के अनुसार हर 100 में से 11 भारतीय पुरुष मानते हैं कि सेक्स से इंकार करने पर पति को अधिकार है कि वह पत्नी को आर्थिक सहायता देने से मना कर दे। ऐसा मानने वाले पुरुषों की संख्या तेलंगाना में 30.7 प्रतिशत, आंध्र प्रदेश में 28.3, जम्मू-कश्मीर में 18.3, त्रिपुरा में 17.9 और मिजोरम में 15.7 प्रतिशत है। (देखें ग्राफ)
हर 100 में से 18 भारतीय पुरुष यह मानते हैं कि पत्नी द्वारा सेक्स से इंकार करने पर पतियों को अधिकार है कि वह पत्नियों से नाराज हो सके या उन्हें डांट-फटकार सके। ऐसा मानने वाले पुरुषों की संख्या आंध्र प्रदेश में 43 प्रतिशत, तेलंगाना में 43, मिजोरम में 29.1, जम्मू-कश्मीर में 21.7, और पश्चिम बंगाल में 20.3 प्रतिशत है।
हर 100 में से 9 भारतीय पुरुष ने सेक्स से इंकार करने पर पत्नी को ‘नियंत्रित’ करने के लिए उसके खिलाफ हिंसा का सहारा लेना या उन्हें मारना-पीटना जायज मानते हैं। ऐसा मानने वालों में सबसे ज्यादा पुरुषों की संख्या आंध्र प्रदेश में 28.5, तेलंगाना में 26 प्रतिशत, मिजोरम में 19.1, जम्मू-कश्मीर में 14.8. औऱ हरियाणा में 11 प्रतिशत है।
सर्वे के अनुसार हर 100 में से 15 भारतीय पुरुष इस बात से सहमत नहीं थे कि महिला की अगर इच्छा नहीं है या वह थकी है तो उसका सेक्स से इंकार करना जायज है। ऐसा मानने वाले पुरुषों की संख्या तमिलनाडु में 37.4 प्रतिशत, कर्नाटक में 32.1, अरुणाचल प्रदेश में 26.1, असम में 24.1 व नगालैंड में 19.7 प्रतिशत है।
महिलाओं के खिलाफ यौन हिंसा की घटनाएं
राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण में 15-49 वर्ष की विवाहित महिलाओं से उनके पतियों के यौन हिंसा संबंधी सवाल पूछे गए। उनसे पूछा गया कि क्या उनके पति पति उनकी इच्छा के खिलाफ यौन संबंध बनाने का दबाव देते हैं, या इसके लिए हिंसा का सहारा लेते हैं, या फिर किसी तरह की धमकी देते हैं। इन सवालों के जवाब में हर 100 में से 5 महिलाओं का मानना था कि उनके पतियों ने उनकी इच्छा के विरुद्ध उन्हें यौन संबंध के लिए मजबूर किया। बिहार में 11.4 प्रतिशत, मणिपुर में 10.6 प्रतिशत, त्रिपुरा में 9, पश्चिम बंगाल में 7.4 और हरियाणा में 7.3 प्रतिशत महिलाओं ने इस तरह की घटनाओं के बारे में बताया।
सर्वे के अनुसार पतियों द्वारा हिंसा झेलने वाली महिलाओं में 21 प्रतिशत में कटने, घाव या जलने की घटनाओं के बारे में बताया। इसमें 8 प्रतिशत महिलाएं गंभीर घाव जैसे कि आंखों में घाव, मोच, हड्डी टूटने या जलने जैसे हिंसा को झेला। 6 प्रतिशत महिलाओं ने गहरे जख्म, हड्डी टूटने या दांत टूटने जैसी हिंसा को झेला।
राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण ने महिलाओं के खिलाफ होने वाली हिंसा को शारीरिक, यौन व मानसिक तीन श्रेणियों में दर्ज किया। सर्वेक्षण में शामिल 31 प्रतिशत महिलाओं ने कभी न कभी शारीरिक, यौन व मानसिक हिंसा का शिकार हुई थीं। 27 प्रतिशत ने सर्वेक्षण के दौरान पिछले बारह महीनों में इस तरह की हिंसा की घटनाओं का जिक्र किया। 6 प्रतिशत ने यौन हिंसा का जिक्र किया।
पतियों द्वारा की जाने वाली हिंसा इस तरह की हिंसा होती है जिसके बारे में महिलाएं अक्सर बातचीत करने या बताने से बचती हैं। इस बारे में राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण की रिपोर्ट कहती है कि 15-49 वर्ष की विवाहित महिलाओं में से 76 प्रतिशत ने अपने साथ हिंसा के बारे में कभी किसी को नहीं बताया। केवल 12.3 महिलाओं ने इस तरह की हिंसा के खिलाफ किसी से मदद मांगी। मदद मांगने वाली महिलाओं में करीब 65 प्रतिशत महिलाओं ने अपने परिवार से ही मदद मांगी, 28 प्रतिशत ने पति के परिवार से मदद मांगी और 15.7 प्रतिशत ने मित्रों में से किसी से मदद मांगी। केवल 3.5 महिलाओं ने पुलिस से, 1 प्रतिशत ने वकीलों और सामाजिक संगठनों से मदद की गुहार लगाई।1
वैवाहिक बलात्कार और कानून
भारत में विवाहित महिलाएं बलात्कार संबंधी कानून के दायरे से बाहर ही रही हैं। भारतीय कानून इस संबंध में पुरुषों को वैवाहिक संबंधों के आधार पर पूरी तरह से सुरक्षा प्रदान करता है। हालांकि कुछ कानूनी सुधार के बाद 18 वर्ष सी कम आयु की महिलाओं के साथ उनके पतियों द्वारा इच्छा के विरुद्ध बनाए गए यौन संबंध को बलात्कार की श्रेणी में रखा गया है लेकिन अभी भी 18 वर्ष से ऊपर की महिलाएं को वैवाहिक बलात्कार के दायरे से बाहर रखा गया है। भारतीय दंड संहिता की धारा 375 में बलात्कार संबंधी प्रावधानों का जिक्र है। इसके अनुसार “किसी पुरुष द्वारा अपनी पत्नी जो कि 15 वर्ष से कम की न हो, के साथ यौन संबंध बलात्कार नहीं है।” धारा 376 में बलात्कार के जुर्म में सजा का प्रावधान है। इस धारा के अनुसार केवल दो तरह की विवाहित महिलाओं से बलात्कार के मामले में सजा हो सकती है। पहली वो जो 15 वर्ष से कम आयु की हों और दूसरी वो जो पति से अलग (कानूनी या सामाजिक तौर पर)2 हो चुकी हों।
वर्ष 2005 में घरेलू हिंसा से महिलाओं की सुरक्षा से जुड़ा अधिनिमय पारित किया गया। इस अधिनियम में भी विवाहित महिलाओं का पतियों द्वारा बलात्कार को केवल हिंसा के रूप में देखा गया है। कोई भी महिला अपने साथ ऐसी किसी घटना की शिकायत दर्ज कराती है तो उसे महिला के खिलाफ हिंसा के रूप में दर्ज किया जाता है।
न्यायपालिका और विधायिका दोनों में वैवाहिक बलात्कार को लेकर एक दकियानूसी रवैया देखना को मिलता रहा है। ऐसे ज्यादातर मामलों में कानून में सजा का प्रावधान होने का का हवाला दिया जाता है, जो एक हद तक सही भी है। लेकिन कुछ मामलों में न्यायाधीशों के अपने विचार भी वैवाहिक बलात्कार के खिलाफ होते हैं और वह इसे स्वीकार नहीं कर पाते। सुप्रीम कोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश जस्टिस दीपक मिश्रा ने बंगलुरु में लॉ कॉलेज के एक समारोह में कहा कि “मुझे नहीं लगता कि वैवाहिक बलात्कार को भारत में अपराध के रूप में देखा जाना चाहिए। इससे परिवार में पूरी तरह से अराजकता फैल जाएगी। हमारे देश इसलिए भी मजबूत है क्योंकि यहां परिवार, पारिवारिक मूल्यों पर चलता है।” 3
वर्ष 2013 में सुप्रीम कोर्ट में इंडिपेंडट थॉट ने एक जनहित याचिका दायर कर भारतीय दंड संहिता की धारा 375 के भाग 2 को चुनौती दी। भाग 2 में पति द्वारा पत्नी के साथ यौन संबंध को बलात्कार से अपवाद माना गया है। इंडिपेंड थॉट का कहना था कि यह अपवाद अनुच्छेद 14,15 और 21 का उल्लंघन करता है। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इसे अपराध मानने से यह कहते हुए खारिज कर दिया की “संसद में वैवाहिक बलात्कार पर काफी विचार हुआ और इसे बलात्कार जैसा अपराध माने जाने योग्य नहीं पाया गया। इसीलिए इसे अपराध की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता।” संसद में भी विषय पर बहस हुई। मेनका गांधी महिला व बाल विकास मंत्री के पद पर रहते हुए वैवाहिक बलात्कार का बचाव किया था। उनका कहना था कि “भारतीय संदर्भों में यह लागू नहीं होता।” एक अन्य सांसद हीराभाई पार्थीभाई चौधरी ने भी इसका बचाव करते हुए कहा कि “मेरिटल रेप को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर माना जा सकता है लेकिन भारतीय परिस्थितियो में इसे लागू नहीं किया जा सकता। क्योंकि यहां कई कारक हैं, जैसे कि शिक्षा का स्तर, अशिक्षा, गरीबी, विविध तरह के सामाजिक विधान व मूल्य, धार्मिक भावनाएं व सामाजिक विचार में विवाह को पवित्र नजरों से देखा जाता है।”
गुजरात हाइकोर्ट के जज जस्टिस जे बी पारदीवाला ने 2018 में वैवाहिक हिंसा के एक मामले में कहा कि “चूंकि भारतीय दंड संहिता पत्नी के साथ यौन संबंध को बलात्कार की श्रेणी में नहीं रखा गया है इसलिए महिला के पति को बलात्कार की सजा नहीं दी जा सकती। लेकिन पारदीवाला ने अपने फैसले में कानून की सीमाओं पर नाखुशी भी जाहिर की। उन्होंने वैवाहिक बलात्कार को अपराध की श्रेणी में रखने की वकालत की और कहा कि “वैवाहिक बलात्कार पति का विशेषाधिकार नहीं है बल्कि हिंसक क्रिया है और इसे अपराध की श्रेणी में रखा जाना चाहिए।”4
निर्भया बलात्कार और हत्याकांड के बाद इस तरह के मामलों पर जस्टिस जे एस वर्मा की अध्यक्षता में बनी समिति ने अपनी सिफारिशों में बलात्कार की परिभाषा को विस्तृत करने की सिफारिश की थी।5 समिति ने इसके लिए 2007 में बनी संयुक्त राष्ट्र की एक समिति का हवाला दिया। इस समिति ने भारत में महिलाओं के खिलाफ हर तरह के भेदभाव के उन्मूलन संबंधी अपनी सिफारिशों में कहा था कि “बलात्कार की परिभाषा को विस्तृत करने से महिलाओं के खिलाफ होने वाले यौन हमलों की सच्चाई को उभारा जा सकता है। इससे बलात्कार की परिभाषा में से वैवाहिक बलात्कार के अपवाद को भी खत्म किया जा सकता है।” 6
दिल्ली उच्च न्यायालय में दिए अपने हलफनामे में भारत सरकार ने वैवाहिक बलात्कार को बलात्कार की श्रेणी में रखने से मना कर दिया। इसकी दो वजहें गिनाई गईं। पहला कि वैवाहिक संबंध पवित्र रिश्ता होता है और भारतीय संदर्भों में इस रिश्ते का अपराधीकरण करने से समाज अस्थिर हो जाएगा। दूसरा, इसे अपराध की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता क्योंकि इससे पतियों के खिलाफ बड़े पैमाने पर फर्जी मामले दर्ज होने लगेंगे। सरकार का ये तर्क कि इससे विवाह जैसे पवित्र संस्थान पर असर आएगा सही नहीं है। अगर ये संस्थान पवित्र है तो इसमें हिंसा की कोई जगह नहीं होनी चाहिए। कई और ऐसे कानून हैं जिसमें वैवाहिक रिश्तों में हिंसा को अपराध माना गया है जैसे कि घरेलू हिंसा अधिनियम 2005। इस अधिनियम से तो विवाह जैसे संस्थान पर कोई आंच नहीं आई फिर वैवाहिक बलात्कार को अपराध मानने से भी विवाह जैसे संस्थान पर कोई खतरा नहीं हो सकता।
भारतीय समाज में महिलाओं की स्थिति इस तरह के अपराध की मूल जड़ है। ऐतिहासिक रूप से भारत में महिलाओं को पति या पति की संपत्ति की तरह देखा जाता रहा है। ऐसे में वैवाहिक बलात्कार को अपराध मानना, संपत्ति के खिलाफ अपराध जैसा होगा। इसीलिए पुराने समय में बलात्कार जैसे मामलों में जुर्माने के रूप में पिता या पति को क्षतिपूर्ति दी जाती थी। अभी भी कुछ पंचायते ऐसा ही फैसला देती हैं जिसमें आरोपी को पीड़िता के पिता को जुर्माने देने का हुक्म दिया जाता है।
वर्धा जिले का अध्ययन
वर्धा में वैवाहिक बलात्कार व हिंसा पर शोध के लिए इस तरह की घटनाओं का शिकार हुईं महिलाओं का साक्षात्कार लिया गया। साक्षात्कार के लिए महिलाओं का चयन उद्देश्यात्मक नमूना चयन (Purposive sampling) के माध्यम से किया गया। तीन तरह की महिलाओं से साक्षात्कार लिया गया। पहली वो महिलाएं जिन्होंने वैवाहिक बलात्कार या यौन हिंसा झेली हों लेकिन उन्हें कभी रिपोर्ट नहीं किया। दूसरी वो महिलाएं थी जिन्होंने इस तरह की हिंसा के खिलाफ पुलिस में रिपोर्ट किया। तीसरी वो महिलाएं जो इस तरह के मामलों के खिलाफ अदालत में केस लड़ रही हैं। वर्धा की महिला तकरार समिति और ऐसे महिलाओं का केस लड़ने वाली वकीलों से भी साक्षात्कार के जरिये आंकड़े जुटाए गए। इसके अलावा राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण 2015-16 की रिपोर्ट से भी महिलाओं के खिलाफ हिंसा के प्राथमिक आंकडें जुटाए गए।
वर्धा महाराष्ट्र के उत्तरी भाग में स्थित है। राष्ट्रीय परिवार व स्वास्थ्य सर्वेक्षण के दौरान यह सामने आया कि महाराष्ट्र में 15-49 वर्ष आयु की विवाहित महिलाओं में से 21 प्रतिशत महिलाएं घरेलू हिंसा का शिकार हुई। 2 प्रतिशत महिलाओं ने बताया कि उनके पतियों ने मना करने के बावजूद जबरन यौन संबंध बनाए। एक प्रतिशत महिलाओं का अनुभव था कि इसके लिए उनका गला दबाया गया या जलाया गया। (देखें तालिका) शारीरिक या यौन हिंसा झेलने वाली महिलाओं में से केवल 9 प्रतिशत ने मदद की गुहार लगाई। इसमें से भी ज्यादातर ने अपने करीबी रिश्तेदारों से मदद मांगी। केवल 3 प्रतिशत महिलाओं ने पुलिस में रिपोर्ट किया। 79 प्रतिशत महिलाओं ने इस तरह के मामलों की कभी कहीं शिकायत नहीं की। (देखें तालिका)
महाराष्ट्र के वर्धा जिले में वैवाहिक बलात्कार व हिंसा पर शोध के दौरान ऐसे कई मामले सामने आए जिसमें महिलाओं ने अपने साथ वैवाहिक बलात्कार और हिंसा के अनुभव बताया। वर्धा की रहने वाले 30 वर्षीय माधवी (काल्पनिक नाम) ने शोधार्थी को बताया कि उसकी शादी 18 साल कि उम्र में हो गई थी| पति प्राइवेट कंपनी में जॉब करते हैं। घर में सास, ससुर, ननद सब साथ में रहते है। शादी के 12 साल बाद भी मुझे बच्चा नहीं हुआ जिसके कारण मुझे परिवार, समाज सब की कड़वी बातें सुननी पड़ती है। सभी लोग बच्चा न होने कारण मुझे ही मानते हैं और तमाम तरह के बच्चा होने का उपाय बताते रहते हैं। अब मेरे पति भी इन सब का कारण मुझे ही मानते है मैं उनसे बहुत बार कही की एक बार डॉक्टर के पास चलते है और दोनों का चेकअप करवा कर देखते हैं कि क्या कारण है लेकिन वो अपना चेकअप करवाने से इंकार कर देते हैं और मुझ पर गुस्सा करते है वो कहते हैं कि कमी तुममे है तो तुम चेक करवाओ मैं नहीं करवाऊँगा और अगर तुम मुझे बच्चा नहीं दे सकती तो मैं तुम्हें तलाक दे दूंगा। कई बार गुस्से में वह संबंध बनाते वक्त मुझे मारते-पीटते भी है और मुझे बार-बार अपशब्द कहते हैं ये सब सिर्फ वह ही नहीं करते बल्कि घर में मेरी सास, ननद भी मेरे साथ वैसे ही बर्ताव करती हैं मुझे बात-बात पर बांझ कहकर अपमानित करती है और मेरे पति कि दूसरी शादी करने कि धमकी देती रहती हैं।
38 वर्ष की रीना (काल्पनिक नाम) का कहना है कि उसकी शादी 22 साल कि उम्र में उसके पति देवांश (काल्पनिक नाम) के साथ अरेंज मैरिज हुई थी। वह बारहवीं तक पढ़ी हैं। वह कहती हैं कि मैं आगे पढ़ना चाहती थी लेकिन पैसे कि कमी के वजह से वह आगे नहीं पढ़ पाई। उनकी बातचीत उनके पति से शादी से पहले कभी नहीं हुई थी और ना ही वह कभी एक-दूसरे से मिले थे सब कुछ शादी के बाद ही हुआ। वह कहती है कि मुझे सेक्स के बारे में भी बहुत जानकारी नहीं थी कि इसका सही तरीका क्या है क्योंकि मैं घर से बाहर बहुत कम जा पाती थी और मेरी सहेलियों के साथ ज्यादा संपर्क नहीं था कि मैं उनके साथ रहकर ही कुछ बातें जान सकूं। स्कूल के बाद से ही मैं घर में ही रहती थी जब तक उसकी शादी नहीं हो गई, ज्यादा किसी से बातचीत नहीं होने के कारण मुझे बहुत कुछ नहीं पता था। शादी के बाद एकदम से मेरे साथ इतना कुछ होने लगा जिसे मैं समझ नहीं पा रही थी। जिस इन्सान से मैं कभी बात भी नहीं कि थी ना कभी मिली थी उस इन्सान के सामने अचानक से पूरी तरह नंगा हो जाना ये सब कुछ मुझे अन्दर से बहुत परेशान कर रहा था। मेरे पति मेरे साथ एनल सेक्स करते थे जिसकी वजह से मुझे बहुत दर्द होता था। जब मैं उन्हें ऐसे करने से मना करती तो कहते कि ‘मैं तुमसे पूछ कर करूँगा क्या कि मुझे क्या करना है और तुम्हे शर्म नहीं आती ऐसा कहते हुए? शादी तुमसे कि है तो सेक्स किसी और से करने जाऊंगा क्या’ ? और मैं चुप हो जाती। रीना ने बताया कि उसने इन हिंसक बर्तावों की शिकायत केवल अपनी जेठानी से की जिन्होंने इसे हंसी में उड़ा दिया। वह कभी भी पुलिस के पास नहीं गई। बाद में उसने खुद ही तय किया की वह इन सब से मुक्ति के लिए अपने पति से अलग रहेगी। उसने काम करना शुरू किया और अलग रहने लगी।
वर्धा जिले में पतियों द्वारा यौन हिंसा या वैवाहिक बलात्कार की शिकार महिलाओं से बातचीत से यह साफ पता चला कि इस तरह की शिकायतें बहुत कम ही पुलिस के पास जा पाती हैं। जो शिकायतें पुलिस के पास जाती भी हैं तो वह घरेलु हिंसा या झगड़े के रूप में दर्ज होती हैं। उसके बाद पुलिस उसे महिला तकरार समिति (काउंसलिंग सेंटर) के पास भेज देती है। वर्धा के पुलिस अधीक्षक कार्यालय में स्थित महिला तकरार समिति की पीएसआई रेखा काढ़े से बातचीत में पुलिस के पास आने वाले ऐसे मामलों की एक लंबी सूची है लेकिन ज्यादातर मामलें घरेलू हिंसा के रूप में पहले पुलिस स्टेशन में दर्ज किये जाते हैं उसके बाद पुलिस उसे महिला तकरार समिति के पास भेजती है ताकि वो उनकी काउंसलिंग कर मामले को प्राथमिक स्तर पर ही सुलझा सके यदि मामला उनसे नहीं सुलझता और रिपोर्टकर्ता समझौता करने को तैयार नहीं होते तो मामले को कोर्ट में भेज दिया जाता है। रेखा काढे का कहना था कि “ज्यादातर मामले पहले घरेलू हिंसा के रूप में आते हैं जैसे – शराब के नशे में मारपीट, गाली गलौज आदि, जिसके कारण महिला अपने पति के साथ रहने से इंकार करती है लेकिन जब हम उनकी लगातार कई काउंसलिंग करते हैं तब जाकर पता चलता है कि उनके बीच पैदा हुई समस्या का मुख्य कारण जबरन यौन सम्बन्ध या उस दौरान पतियों द्वारा हिंसक बर्ताव करना एक बड़ा कारण होता है।”
वर्धा के सत्र न्यायलय में कार्यरत एडवोकेट अर्चना पेठे से वैवाहिक संबंधों में यौन हिंसा विषय पर शोधार्थी से बातचीत में वह बताती हैं कि “इस तरह के केस आते है लेकिन कोई सीधे तौर पर ऐसा आरोप नहीं लगाता। परन्तु पीड़ित से बात करने पर उसकी जड़ में महत्वपूर्ण कारण यही होता है कि उनके पति उनसे जब चाहे सेक्स की डिमांड करते है। ज्यादातर महिलाओं का अपने पतियों के साथ ये बुरा अनुभव होता है कि काम के वक्त, बच्चों के सामने, जब वो थकी होती है या फिर बीमार होती है तब, गर्भवती होती है या फिर पीरियड्स, किसी भी समय इसके साथ ही उनके साथ प्राकृतिक तरीके से सेक्स न करके गुदा मैथुन या ओरल सेक्स की मांग करते हैं और पत्नी के मना करने पर उनसे जबरदस्ती करते हैं और अन्य तरीकों से उन्हें प्रताड़ित करते है। आज के समय में महिलाएं भी काम पर जाती है और प्राइवेट सेक्टर में तो बारह-बारह घंटें काम करना पड़ता है और घर आकर उन्हें घर का काम भी करना पड़ता है जिसकी वजह से वह थक जाती हैं और रात को सोना चाहती है। ऐसे में कई बार वो संबंध नहीं बनाना चाहती है, लेकिन पति इन सब चीजों को नजरअंदाज करते है और अपनी डिमांड पूरी करना चाहते हैं।”
निष्कर्ष
आखिर एक पति अपनी पत्नी का बलात्कार क्यों करता है? इस सवाल का जवाब समाज की मूल विचारधारा में छिपा है जिसमें स्त्रियों को पुरुषों की संपत्ति के तौर पर देखा जाता है। पारंपरिक तौर पर पुरुष अपनी संपत्ति का भोग अपनी इच्छानुसार करता रहा है। ऐसे में वैवाहिक बलात्कार जैसे मुद्दे पुरुषों के लिए बेतुके लगते हैं। आधुनिक समाज में जब हर स्तर पर स्त्रियों की भागीदारी व बराबरी की कोशिश हो रही है और इन कोशिशों का श्रेय पुरुष बढ़चढ़ कर लेते रहे हैं। अब समय आ गया है कि वैवाहिक बलात्कार को परिभाषित किया जाए। इसके दायरे में उन सभी महिलाओं के साथ होने वाली बलात्कार की घटना को शामिल किया जा सकता है जो कभी भी विवाहित रही हों। अर्थात विवाहित, तलाकशुदा, पति से अलग हो कर रह रही महिला और लिविंग पार्टनर के साथ उनकी इच्छा के विरुद्ध पति या जीवनसाथी द्वारा जबरन यौन संबंध बनाने या फिर यौन हिंसा करने वाले को दंडित किये जाने का प्रावधान होना चाहिए। इसके लिए सख्त कानून बनाए जाने की जरूरत है। कानून के अभाव में महिलाओं में उनके साथ होने वाले इस तरह के शोषण व अपराध पर सवाल खड़ा करना मुश्किल होता है। वर्धा में किए गए इस अध्ययन से पता चलता है कि वैवाहिक बलात्कार की शिकार ज्यादातर महिलाएं समाज व परिवार का लिहाज कर चुप रह जाती हैं। जो महिलाएं पुलिस या वकीलों से मदद की गुहार भी लगाती हैं तो उपयुक्त कानून के अभाव में उनके साथ होने वाले अत्याचार को घरेलू हिंसा के रूप में दर्ज किया जाता है। पुलिस व कोर्ट घरेलू हिंसा के मामले में ज्यादातर पति-पत्नी के बीच सुलह कराना अपनी जिम्मेदारी समझते हैं। इससे बलात्कार जैसे घृणित अनुभवों से गुजरने वाली महिलाएं थक हार कर वापस उसी पृतसत्तात्मक व्यवस्था में घुटने को मजबूर हो जाती है। वैवाहिक बलात्कार को अपराध की श्रेणी में नहीं रखा जाना पृत्तसत्ता को मजबूत करता है।
- राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-4 (2015-16) रिपोर्ट, पेज नं 561-59
- भारतीय दंड संहिता, 1860, धारा 376, 376-ए
- 3.देखें टाइम्स ऑफ इंडिया, 9 अप्रैल, 2019 “Marital rape needn’t be an offence: Ex-Chief Justice of India Dipak Misra”, https://timesofindia.indiatimes.com/city/bengaluru/no-need-to-make-marital-rape-an-offence-ex-cji-dipak-misra/articleshow/68785604.cms
- देखें हफिंग्टन पोस्ट की खबर https://www.huffingtonpost.in/entry/india-marital-rape-gujarat-high-court_n_5ac571dce4b0aacd15b82c00
- जस्टिस जे एस वर्मा समिति की रिपोर्ट, Report of the committee on amendments to criminal law, p.62
- देखें महिलाओं के खिलाफ भेदभाव उन्मूलन समितिः भारत, की रिपोर्ट (Committee on the Elimination of Discrimination against Women: India, 2007) https://www.un.org/womenwatch/daw/cedaw/cedaw25years/content/english/CONCLUDING_COMMENTS/India/India-CO-3.pdf
- राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण- महाराष्ट्र राज्य की रिपोर्ट, पेज 29-30
परिशिष्ठ
ग्राफ व तालिका
भारत में 15-49 आयुवर्ग की महिलाओं के साथ उनकी इच्छा के विरुद्ध पतियों द्वारा जबरन यौन संबंध की घटनाएं (प्रतिशत में)
पत्नियों द्वारा यौन संबंध बनाने से इंकार करने पर पतियों द्वारा मारपीट की घटनाओं को सही मानने वाले पुरुषों का आंकड़ा (प्रतिशत में)
महाराष्ट्र में महिलाओं के खिलाफ शारीरिक व यौन हिंसा का ब्यौरा
महाराष्ट्र में महिलाओं के खिलाफ शारीरिक, यौन व मानसिक हिंसा की प्रवृत्ति
स्रोत- राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण महाराष्ट्र राज्य की रिपोर्ट, पेज 158. यह आंकड़े 2472 विवाहित महिलाओं से साक्षात्कार पर आधारित हैं। यह आंकड़े महिलाओं के साथ पिछले 12 महीनों में घटी घटनाओं के आधार पर हैं।
लेखिका, स्त्री अध्ययन विभाग, हिन्दी विश्वविद्यालय में शोधार्थी हैं. संपर्क: rajlakshmikamail@gmail.com