नोबेल पुरस्कार जीतने वाली पहली अफ्रीकी-अमेरिकी महिला–टोनी मॉरिसन

राजीव सुमन

टोनी मॉरिसन को सामजिक मुद्दों पर अपनी सूक्ष्म और स्पष्ट दृष्टिकोण रखने के साथ-साथ उनके तीक्ष्ण शब्द प्रयोगों के लिए भी याद किया जाएगा. उनकी राजनीतिक दृष्टि जिसमे वह श्वेत वर्चस्व, लिंगवाद और सभी अमानवीय विचारधाराओं के खतरनाक प्रभावों का मुकाबला करने के लिए एक ख़ास तरह की भाषा का प्रयोग करती हैं वह उनकी पहचान और प्रभाव का विश्लेषण करने के लिए एक पर्याप्त क्षेत्र मुहैया कराता है. टौनी की सौंदर्य प्रतिभा और उसकी सूक्ष्म राजनीतिक संवेदनशीलता सामयिक नहीं है. 1984 के अपने एक निबंध “रूटेडनेस: द एनसेस्टर इन द फाउंडेशन” में कहा था कि काम को “राजनीतिक और सुंदर दोनों” होना चाहिए. हमें उन्हें एक क्रांतिकारी राजनीतिक विचारक के रूप में भी याद रखना चाहिए, जिन्होंने दुनिया को बदलने के लिए अपनी लेखनी का इस्तेमाल किया.उनकी लेखनी का फलक किसी भी स्थिति की निरपेक्ष और विनाशकारी गैरबराबरी को चिन्हित करता है जो दूसरों को कमतर या न्यून समझते हैं. उनकी व्यापक कलात्मकता और बौद्धिकता का यह तत्व उनके व्यापक राजनीतिक निहितार्थ को दर्शाते हैं.

साभार गूगल


टोनी मॉरिसन महिला आंदोलनो और उससे जुड़े कुछ महत्वपूर्ण कार्यों को भी अंजाम दिया, मसलन जिल जॉनसन द्वारा “लेस्बियन नेशन” और रोज़लिन फ्रैड बैक्संडाल, लिंडा गॉर्डन और सुसान रेवरबी द्वारा संपादित “अमेरिकाज वर्किंग वीमेन: ए डॉक्युमेंट्री हिस्ट्री”. उन्होंने मुहम्मद अली, ह्युई न्यूटन, जॉर्ज जैक्सन सहित ब्लैक पवार मूवमेंट की आवाज़ों का संपादन किया. उन्होंने कार्यकर्ताओं, रैलियों और प्रदर्शनकारियों आदि के घटनाओं को एक स्थायी आंकड़ों के रूप में सुरक्षित बनाने में मदद की जो बाद में उनके कामों का गवाह बन सके. वह उन लंबे संघर्षों की गवाह थीं पर पारंपरिक अर्थों में एक कार्यकर्ता नहीं थी.

स्त्रीवाद से उनका सम्बन्ध : हालाँकि टोनी मॉरिसन के उपन्यास आम तौर पर अश्वेत महिलाओं पर केंद्रित होते हैं, लेकिन स्वयं को वह स्त्रीवादी के रूप में नहीं समझतीं. 1998 में एक साक्षात्कार में जब उनसे यह पूछा गया कि “स्त्रीवाद से आप इतनी  दूरी क्यों रखती हैं ? तो इसके जवाब में उन्होंने कहा : “संभवतः मैं अपनी कल्पना में जितना संभव हो उतना खुद को मुक्त रख सकूँ,  मैं अपना पक्ष कैसे रख सकूंगी, जब स्वयं को बाँध लूँ. वह सब कुछ जो मैंने लेखन की दुनिया में अब तक किया है, वह अभिव्यक्ति के विस्तार के लिए ही तो किया गया है, न कि  इसे बंद करने के लिए, कभी-कभी विचारों के नए दरवाजे खोलने के लिए, यहाँ तक कि कभी-कभी किताब की रचनाओं का अंत भी शेष छोड़ देती हूँ, पुनर्व्याख्या, पुनर्विचार थोड़ी अस्पष्टता, दुविधा के लिए अंत को खुला छोड़ना जरुरी है”. टोनी मॉरिसन कहती हैं कि उनके कुछ पाठक इसे “मेरी मजबूती” समझते हैं, जो यह महसूस कर सकते हैं कि मैं  स्त्रीवाद के लिए कोई अलग द्वार बनाने की दिशा में हूँ. मैं पितृसत्ता का समर्थन नहीं करती, और न ही मैं समझती हूँ कि इसकी जगह मातृसत्ता कायम हो जाए. मुझे लगता है कि यहाँ प्रश्न सभी के लिए न्यायसंगत पहुंच और सभी के लिए दरवाजे खोलने का है.” 2012 में उन्होंने 1970 के दशक में काले और गोरे स्त्रीवादियों के बीच अंतर के बारे में एक सवाल का जवाब देते हुए कहा– “वूमनिस्ट वह है जो काले स्त्रीवादी खुद को कहते थे, दोनों एक ही चीज़ नहीं थे, काले स्त्रीवाद में पुरुषों के साथ संबंध बेहद मायने रखते थे. ऐतिहासिक रूप से, काली महिलाओं ने हमेशा अपने पुरुषों को आश्रय दिया है क्योंकि वे वहाँ से बाहर थे और वे ही ऐसे थे जिनकी हत्या होने की सबसे अधिक संभावना थी।” डब्ल्यू. एस. कोट्टिसवारी(W. S. Kottiswari), पोस्टमॉडर्न फेमिनिस्ट राइटर्स (2008) में लिखती हैं कि मॉरिसन मुख्यधारा के इतिहासकारों द्वारा लिखे गए इतिहास को दुबारा लिखकर और बिलवड एवं पैराडाइज में मिथक और लोक कथाओं के मूल पाठ को उलटकर “यूरो-अमेरिकन डाइकोटोमी” को बदलते हुए “उत्तर-आधुनिक नारीवाद” की विशेषताओं का उदाहरण प्रस्तुत करती हैं. कोटिस्वरी बताती हैं, “पश्चिमी चिन्हों, अमूर्तताओं के बजाय, मॉरिसन ने स्त्री रंग की शक्तिशाली ज्वलंत भाषा को महत्व दिया है … वह अनिवार्य रूप से उत्तर आधुनिक हैं क्योंकि मिथक और लोककथाओं के लिए उनका दृष्टिकोण पुनर्पाठ का है.”

टोनी मॉरिसन का मानना ​​था कि लेखक का कर्तव्य है कि वह जनता की आवाज बने. उपन्यास ऐसा करने का एक साधन मात्र था उनके लिए. दशकों पहले उन्होंने अपने तीक्ष्ण व्याख्यानो और निबंधों की एक श्रृंखला के माध्यम से अधिनायकवाद के बढ़ते खतरे के बारे में सचेत किया था. उन्होंने सभी महान विचारकों की तरह, एक दर्पण रखा जो हमें बुराई और अच्छाई की हमारी दोनों क्षमताओं को दिखाता है. अपने उपन्यास, “ए मर्सी” में, नस्लीय दासता से पहले के एक ऐसे दौर में वे हमें ले जाती हैं जब एक नए राष्ट्र को अलग-अलग विकल्प चुनना था, जहां सब कुछ जीवंत और संभव था। वह हमें उस विनाशकारी विकल्प के रास्ते से नीचे नहीं ले जाती, जो वास्तविकता में बनाया गया था, जिसे हम जी रहे हैं. वह बस  अपनी कल्पना की शक्ति का उपयोग करके हमें याद दिलाती हैं कि समय के किसी भी स्तर पर  हमने वह अलग तरीका चुना होगा.

शेक्सपियर की तुलना में अब वे अमेरिका में भले ही अधिक पढ़ी जाती हों पर उनके आलोचकों की भी कमी नहीं है, भले ही वे आज जोर से नहीं बोल रहे हों. पर, उनकी आलोचना इस रूप में करते हैं कि उनकी विषयवस्तु बहुत संकीर्ण है, उन्होंने गुलामी प्रथा के बारे में लिखा कि गुलामी ने काले लोगों के साथ क्या किया था. समय के इस दौर में यह बेहद पुरानी बात हो चुकी है.., हालांकि उनका गद्य उत्तम है, मगर कठिनाई है तो कथ्य में. उनका सारा लेखन आत्म-घृणा, शरीर-त्याग, विश्वासघात, भूतों की यात्रा, बलात्कार, अनाचार, हत्या, यहां तक ​​कि भ्रूणहत्या को समेटे है जो, सभी क्रूर नस्लीय पूर्वाग्रह से बंधे हुए हैं. स्टेनली क्राउच ने उनके सबसे प्रसिद्ध कृतियों में से एक “बिलोवेड” को  ब्लैकफेस होलोकॉस्ट उपन्यास कहा जो केवल यह सुनिश्चित करने के लिए लिखा गया है कि सबसे अधिक पीड़ित अश्वेत महिलाओं की दृष्टि भी कमजोर नहीं होती है. दूसरों ने उनकी लेखनी की तुलना गोथिक फंतासी आदि से  भी की है…

एक लेखिका के रूप में अपने पांच दशक से भी ज्यादा लंबे करियर के माध्यम से बार-बार उन्होंने अपने लेखन की विषय वस्तु के अपने चयन के बारे में समझाया है. उन्होंने मारियो कैसर और सारा लाडीपो मानिका के साथ एक बातचीत में कहा था, यह सब उसके देश के बारे में है कि कैसे वह अफ्रीकियों के श्रम के गर्भ में पैदा हुआ था, जो “मुफ्त में काम करते हैं और खुद को और अधिक मुफ्त के श्रमिकों के रूप में पुनारोत्पादित करते हैं” और यही पाप आज भी बहुत ही ठोस तरीके से जारी है.

अपने पहले उपन्यास, “द ब्लूएस्ट आई” जो उन्होंने 39 वर्ष की उम्र में लिखा था और जो अभी भी उनका सबसे अधिक चर्चित उपन्यास है में बड़े मार्के की बात लिखती हैं.  “देखिये, नस्लवाद वास्तव में और सच में दर्द देता है. यदि आप सचमुच गोरा होना चाहते हैं जो आप नहीं हैं और आप युवा और कमजोर हैं, तो यह आपको मार सकता है.”

इस अवसाद युगवाले समय में उपन्यास, एक गोरे बुर्जुआ सामाजिक मॉडल से एक साथ निकटता और दूरी काले घरेलू कामगारों केलिए विनाशकारी दुष्परिणामों वाला है। पॉलीन ब्रीडलोव की अपने श्वेत नियोक्ता के प्रति आस्था और सौन्दर्य का भाव उसे उसके अपने बच्चे के प्रति घृणा और दुत्कार पैदा करती है और अपने आकाओं के प्रति भाव पोषित करती है.

ग्यारह साल की पेकोला ब्रीडलोव में अगर नीली आँखों के लिए इतनी आसक्ति आ जाती है कि अंततः वह उसके पीछे  बुरी तरह से पागल हो जाए : “यह कुछ समय पहले पेकोला में हुआ था कि अगर उसकी आँखें, वो आँखें जो तस्वीरें खींचती थीं, और जगहें जानती थीं – अगर उसकी आंखें अलग होतीं, सुंदर होती, तो वह खुद भी अलग होती.” वह जिस शर्ली  देवी की  मूर्ति को पूजती है उसकी आँखें भी तो नीली हैं और बाल ब्लोंड हैं.

यदि मेरा रंग / वर्ग / जाति / देश / ऊँचाई / वजन / जातीयता.. अलग होती तो मैं सुंदर होती, मेरा जीवन सुंदर होता. यह बिल्कुल भी असामान्य विचार नहीं है. और यह सिर्फ एक तरीका है जिसमें मॉरिसन बहुत विशिष्ट तरीके से विषय वस्तु को अपने  बहुविध पाठकों तक ले जाती हैं. उनके अंतिम उपन्यास ‘गॉड हेल्प द चाइल्ड’ की शुरुआती पंक्तियाँ हैं: “यह मेरी गलती नहीं है, इसलिए आप मुझे दोष नहीं दे सकते. “यह उसकी माँ है जिसने अभी-अभी एक ऐसी काली बेटी को जन्म दिया है जिससे वह बहुत डर गई है. “आधी रात की तरह काली, सूडानी कालापन” या जैसा कि कई भारतीय माँ “काली कलूठी” कहती हैं.

लौरेन ओहियो टोनी मॉरिसन के बारे में कहते हैं कि जैसे टॉल्सटॉय ने रूसियों के लिए लिखा था वैसे ही उन्होंने काले पाठकों के लिए लिखा. उन्होंने लोरेन में एक छोटी रंगीन लड़की के लिए नहीं लिखा, लेकिन उसने उसे पढ़ा. जैसे वह दुनिया भर के पुस्तक प्रेमियों द्वारा पढ़ा जाता है, जो अफ्रीकी-अमेरिकी नहीं हैं. क्योंकि वह वह अच्छा था या अच्छी थी. यह सार्वभौमिक अनुभव लिखने की कोशिश करने के बारे में नहीं है. लेकिन यह भी उतना ही बड़ा सच है कि वह काले अमेरिकी अनुभव को नग्न रूप से इसे एक अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर उठाया है.

1993 में, सुश्री मॉरिसन 11 उपन्यासों के साथ-साथ बच्चों की पुस्तकों और निबंध संग्रह की लेखिका थीं. उनकी प्रसिद्द पुस्तकों में “सोलोमन के गीत” जैसी कृतियां थी  जिसे 1977 में नेशनल बुक क्रिटिक्स सर्कल अवार्ड और “बिलोवेड” थीं जिसे 1988 में पुलित्जर पुरस्कार जीता. टोनी मॉरिसन का 88 वर्ष की आयु में 5 अगस्त 2019 को निधन हो गया. वह साहित्य में नोबेल पुरस्कार जीतने वाली पहली अफ्रीकी-अमेरिकी महिला थीं और अमेरिका में नस्ली भेदभाव पर अपनी तीखे और गहरी समझ के लिए जानी जाती थीं. उनकी सबसे अधिक बिकने वाली किताब  ने अमेरिका में काले लोगों की अस्मिता के सवाल को पुरजोर तरीके से उठाया विशेष रूप से अक्सर काले महिलाओं के कुचलने वाले अनुभवों को अपनी चमकदार, भड़काऊ गद्य के माध्यम से जो उनकी विशिष्टता थी और शायद अंग्रेजी में किसी अन्य लेखक के पास वह ताक़त नहीं थी.
अमेरिका को फिर से महान बनाने के स्लोगन में, मॉरिसन अमेरिका को फिर से श्वेत बनाने की मुहीम की एक छिपी हुई परियोजना को देखती हैं – क्योंकि हर जगह “रंग के लोग” हैं, देश की एक लंबी समझ वाली परिभाषा को मिटाने की धमकी देते हुए इसकी श्वेतता पर जोर देते हैं. “और फिर क्या? एक और राष्ट्रपति काला? सीनेट में काले? सुप्रीम कोर्ट के तीन काले न्यायधीश? धमकी भयभीत करनेवाली है.” लेकिन इन सबके बावजूद टोनी मॉरिसन का फलक व्यापक और सुकुनदायक भी है. उनके उपन्यासों में गंभीर परिस्थितियों के बावजूद, मानवता और आनंद का उत्सव है.

टोनी मॉरिसन उन दुर्लभ अमेरिकी रचनाकारों में से एक थीं जिनकी पुस्तकें आलोचनात्मक और व्यावसायिक दोनों स्तरों पर सफल थीं. उनके उपन्यास नियमित रूप से न्यूयॉर्क टाइम्स के बेस्ट-सेलर सूची में दिखाई देते थे. उसके आख्यान पुरुषों, महिलाओं, बच्चों और यहां तक कि भूतों की आवाज़ों को बहुस्तरीय पॉलीफोनी में पिरोते हैं, जिनमें मिथक, जादू और अंधविश्वासों को रोजमर्रा की क्रियाओं से जोड़कर देखा जाता है, एक ऐसी तकनीक जिसके कारण उनके उपन्यासों की तुलना अक्सर लैटिन अमेरिकी जादुई यथार्थवादी लेखकों जैसे गेब्रियल गार्सिया मार्खेज से की जाती थी. “बिलोवेड” में वे लिखती हैं जो 19 वीं शताब्दी में सेट किया गया है लेकिन 20 वीं शताब्दी के रूपक के रूप में खड़ा है, “यह एक दुनिया है जिसमें कोई भी श्वेत आपके दिमाग में आने वाली किसी भी चीज़ के लिए आपकी पूरी आत्म ले सकता है.”

इनका चौथा उपन्यास, “टार बेबी” (1981), काले लोगों के साथ नस्लीय और वर्गीय पूर्वाग्रह के मुद्दों से स्पष्ट रूप से संबंधित है. एक कैरिबियाई द्वीप पर स्थित, यह एक महानगरीय, यूरोपीय-शिक्षित अश्वेत महिला के प्रेम संबंध को किसी न किसी और स्थानीय व्यक्ति के साथ प्यार करता है. उनके अन्य उपन्यासों में “जैज” (1992), में 1920 का न्यूयॉर्क शामिल है, “ए मर्सी” (2008), जो 17 वीं शताब्दी में कथा सेट करके जाति के विचारों से गुलामी की संस्था को तलाक देता है, जहां सेवा, काले या श्वेत वर्ग द्वारा निर्धारित किए जाने के लिए उपयुक्त नहीं था; और “होम” (2012) की कथा वस्तु जिम क्रो साउथ में लौटने पर एक काले कोरियाई युद्ध के दिग्गजों के संघर्ष के बारे में है. इनके नॉनफिक्शन के संस्करणों में “प्लेइंग इन द डार्क: वाइटनेस एंड द लिटरेरी इमेजिनेशन” (1992) और “व्हाट मूव्स एट द मार्जिन: सिलेक्टेड नॉनफिक्शन” (2008, कैरोलिन सी. डेनार्ड द्वारा संपादित) शामिल हैं.

उनकी अन्य उपलब्धियों में 2000 में राष्ट्रीय मानविकी पदक और राष्ट्रपति बराक ओबामा द्वारा 2012 में राष्ट्रपति पदक शामिल हैं. अपने जीवन और कार्य के अध्ययन के लिए समर्पित टोनी मॉरिसन सोसाइटी की स्थापना 1993 में हुई थी. टोनी मॉरिसन का जन्म संयुक्त राज्य अमेरिका के ओहियो के लॉरेन में एक श्रमिक वर्ग के परिवार में हुआ था. वह एक बच्चे के रूप में अपने पिता से कहानियों के रूप में बहुत कुछ पढ़ती आई हैं जो अफ्रीकी-अमेरिकी परंपरा में बिखरी हुई थीं जो बाद में उनके स्वयं के लेखन में एक तत्व बन गया. उन्होंने वाशिंगटन विश्वविद्यालय में हॉवर्ड यूनिवर्सिटी सहित कई विश्वविद्यालयों में अंग्रेजी पढ़ाई और पढ़ाई की है. 1964 से उन्होंने पब्लिशिंग हाउस एडिटर के रूप में काम किया, और 1970 में एक रचनाकार के रूप में अपनी शुरुआत के बाद से, उन्होंने प्रिंसटन सहित कई विश्वविद्यालयों में भी पद संभाला है. टोनी मॉरिसन की शादी से उनके दो बच्चे हेरोल्ड मॉरिसन हैं. उनके बेटे हेरोल्ड फोर्ड मॉरिसन और तीन पोते-पोतियां हैं. एक और बेटा, स्लेड, जिसके साथ उन्होंने बच्चों के लिए कई पुस्तकों के ग्रंथों पर सहयोग किया, 2010 में मृत्यु हो गई. 1989 में, सुश्री मॉरिसन प्रिंसटन के संकाय सदस्य भी रहीं, जहां उन्होंने मानविकी और अफ्रीकी अमेरिकी अध्ययन में पाठ्यक्रम पढ़ाया, और रचनात्मक लेखन कार्यक्रम की सदस्य थीं.

टोनी मॉरिसन की रचनाएं अफ्रीकी-अमेरिकियों के चारों ओर घूमती हैं; हमारे अपने समय में उनका इतिहास और उनकी स्थिति दोनों पर उनकी नज़र है. उनके पात्र अक्सर कठिन परिस्थितियों और मानवता के अंधेरे पक्ष को दर्शाते हैं, लेकिन फिर भी आशा और प्रकाश को व्यक्त करते हैं. जिस तरह से वह व्यक्तिगत जीवन की कहानियों को प्रकट करती है, उसके पात्रों के लिए अंतर्दृष्टि, समझ और सहानुभूति प्रकट करती है. टोनी मॉरिसन की अनूठी कथा तकनीक प्रत्येक नए काम के साथ विकसित होती गई है.

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ISSN 2394-093X
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