लेखिका ने गिनाये प्रगतिशील लेखक संघ के महिला विरोधी निर्णय: संघ सेक्सिस्ट पुलिसवाले के आगे नतमस्क

नूर ज़हीर

भारत के सबसे पुराने प्रगतिशील लेखक संगठन ( प्रलेस) में एक गिरोह की तरह काम कर रहे सेक्सिस्ट पुरुषों के नेतृत्व पर सवाल उठाते हुए वरिष्ठ लेखिका नूर ज़हीर ने घटनाओं का सिलसिलेवार विवरण लिखा है. वे पाकिस्तान से लेकर भारत तक में इस संगठन के भीतर उन घटनाओं, आयोजनों पर आवाज उठाती रही हैं, जिसे कभी तबज्जो नहीं दिया गया. हाल में तीन कश्मीरी लेखिकाओं ने इसी कारण इस लेखक संगठन में शामिल होने से इनकार कर दिया. पढ़ें नूर ज़हीर की पूरी टिप्पणी:

मिलते रहिए इसी तपाक के साथ/बेवफाई कि इंतिहा कीजे

जी हाँ, उनसे मेरे संबंध बहुत अच्छे हैं। इसीलिए तो बोलने की हिमाकत की । और हमारी कम अकली भी देखिये ये हिमाकत बहुत सालों से करते आ रहे हैं । पहली बार सज्जाद ज़हीर शताब्दी मनाने जो डेलीगेशन पाकिस्तान गया था, उसमे से एक सज्जन ने शराब पीकर एक पाकिस्तानी महिला के साथ बदतमीजी की । इन साहब को उस वक़्त भी रोका और भारत लौटकर उनकी शिकायत भी की । आप लोगों की दिलजसपी हो तो ये पूरा किस्सा मेरे यात्रा वृतान ‘सुर्ख कारवां के हमसफर’ मे दर्ज है , पढ़ सकते हैं । लेकिन मेरे संबंध उनसे बहुत अच्छे हैं अभी भी ।
मेरी शिकायत को तो रफा दफा कर दिया गया और मुझे प्रगतिशील लेखक संघ से जितना हो सकता था दूर कर दिया गया । न जाने क्या बात हुई, कि पाँच साल पहले मुझे बेगूसराय बुलाया गया। राजेंद्र राजन जी भगत सिंह की शहादत का दिन मनाते हैं और उस साल उन्होने भगत सिंह लाइब्ररी मे सज्जाद ज़हीर रीडिंग रूम खोला। उनका बहुत शुक्रिया । उस कार्यक्रम मे एक ऐसे साहब आए हुए थे जिनहे जांच कमिटी ने यौन उत्पीड़न का दोषी पाया गया था । दिल्ली विश्वविद्यालय के GSCASH ने उन्हे नौकरी छोड़ देने की सलाह दी थी वरना कार्यवाई का कुछ भी नतीजा निकाल सकता था । वहाँ फिर अपनी शिकायत दर्ज की। जवाब मिला, “हम अपने बल बूते पर यह कार्यक्रम करते हैं, कोई भी ऐतराज करने वाला कौन होता है?” 

साठोत्तरी मर्दों के लिए मर्दों द्वारा मर्दों के संगठन में सेक्सिस्ट विभूति नारायण राय की बढती सक्रियता


पहुँच तो हम गए ही थे तो करते क्या? इतना किया कि ट्रेन का किराया लेने से इंकार कर दिया । राजेंद्र राजन जी से पूछा जा सकता है । लेकिन संबंध राजेन्द्र राजन जी से मेरे बहुत अच्छे हैं । 
2018 मे समानान्तर साहित्य उत्सव हुआ। मुझे बुलाया गया। उस समय विवाद उठा था कृष्ण कल्पित जी कि कुछ पहले अनामिका जी से कि गई बदतमीजी पर। लेकिन वी॰एन॰ राय भी वहाँ मौजूद थे। वहाँ भी सवाल उठाया था, जवाब मिला, “जब मैत्रेयी पुष्पा जी उत्सव मे मौजूद हैं और उन्हे कोई ऐतराज नहीं तो किसी को क्यों ऐतराज हो ।“ खैर, इस साल जब वे नहीं थे तो हमे लगा कि शायद हमारे कहने का कुछ असर हुआ हो। लेकिन कहाँ साहब ? यहाँ तो वरिष्ठ कवि, मंच से ही महिला विरोधी गाली दे गए और विरोध केवल मैंने और सुजाता ने दर्ज किया । वैसे संबंध हमारे समानान्तर साहित्य उत्सव के सभी आयोजकों से बहुत अच्छे हैं ।

मर्द लेखक संघ


जब घाटशिला से बुलावा आया तब केवल रज़िया ज़हीर पर एक दिन के कार्यक्रम कि बात थी । हमने शिरकत कि मंजूरी दी थी । लेकिन फिर वहाँ पर राज्य सम्मेलन कि घोषणा हुई और शेखर मालिक जो आयोजकों मे से एक हैं ने कहा कि दो कार्यक्रम करना संभव नहीं इसलिए रज़िया ज़हीर पर केवल एक सत्र ही रखा जाएगा । हम उसके लिए भी राज़ी थे और कश्मीर का अपना कार्यक्रम आगे बढ़ाने कि कोशिश कर रहे थे कि सूचना मिली वी॰एन॰ राय वहाँ बुलाये जाएंगे । हमने राजेन्द्र राजन जी से बात कि जो बार बार कहते रहे ‘आइये आप, तब बात होगी।‘ यानि बिना किसी आश्वासन के हम पहुंचे, मंच पर बैठे और प्रलेस कह सके कि मेरा विरोध खत्म हुआ । यह असंभव था। हमने काश्मीर जाना तय किया, शेखर मालिक क्योंकि छोटे भाई जैसा हैं उनसे यही कहा कि कश्मीर जाना ज़्यादा ज़रूरी है (अब लगता है सही किया)। शेखर मालिक ने एक संदेश भेजने को कहा लेकिन मैंने जब अलग रहने का फैसला ले लिया तो संदेश भेजना भी मुनासिब नहीं समझा। हाँ सारिका श्रीवासतव को वहाँ रज़िया ज़हीर पर बोलना था और उन्होने सहायता मांगी तो मैंने जितनी बन पड़ी सामाग्री उन्हे भेजी। सुना वे बहुत अच्छा बोलीं, उनका टहे दिल से शुक्रिया । फिर भी दिल मे किसी कोने मे आस थी कि थोड़ा वज़न तो हमारी आपत्ति का समझा जाएगा; इसलिए घाटशिला के अधिवेशन के दौरान विनीत तिवारी से पूछा। जवाब मिला वी॰एन॰ राय वहाँ भी हैं और जयपुर सितंबर मे होने वाले राष्ट्रीय अधिवेशन मे भी आने वाले हैं। वैसे संबंध मेरे घाटशिला के आयोजकों और झारखंड कि इकाई से बहुत अच्छे हैं।


इस बीच जितना हो सका और जहां संभव हुआ मैंने प्रगतिशील लेखक संघ कि सहायता करने कि कोशिश कि है । सितम्बर मे होने वाले अधिवेशन मे इशमधु तलवार जी शबाना आज़मी को बुलाना चाहते थे । मैंने खुद शबाना जी से बात कि और उनसे आग्रह किया कि वे ज़रूर शरीक हों। उनका फोन नंबर और उनकी सेक्रेटरी का ईमेल इशमधु जी से साझा किया। कश्मीर जाने से पहले खुद राजेन्द्र राजन जी को फोन किया क्योंकि समझती हूँ कि कश्मीर के लेखकों को मुख्य धारा से जोड़ना ज़रूरी । लेकिन तीन लेखिकाओं ने प्रलेस मे पुरुषवादी नेतृत्व कि बात कि और अलग रहना ठीक समझा ।

विभूति नारायाण राय के खिलाफ प्रदर्शन करती छात्र-छात्राएं . वे कुलपति रहते हुए माँ-बहन की गालियाँ देते थे


इस बीच मेरे पास बहुत से फोन भी आए। कुछ उन लेखकों के जो समर्थन तो कर रहें हैं मेरे ऐतराज का लेकिन खुलकर सामने नहीं आना चाहते , कुछ मुझे भी चुप कराने कि कोशिश कर रहें हैं, कुछ गरिया भी रहे हैं । इन सबसे भी मेरे संबंध बहुत अच्छे हैं ।
आरोप लगने भी शुरू हो गए हैं जिनका जवाब कल दूँगी । वैसे आरोप लागाने वालों से भी मेरे संबंध बहुत अच्छे हैं !

नूर ज़हीर के फेसबुक पेज से साभार

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