
सिक्स पैक सीता
विप्लव रचयिता संघम (विरसम) के दो दिवसीय सम्मेलन में कई किताबों का लोकार्पण हुआ, जिसमें एक किताब के नाम ने अपनी ओर ध्यान खींचा-‘सिक्स पैक राम’। किताब तेलगू में थी, इसलिए मैं नहीं पढ़ सकती थी, लेकिन लोगों ने उस किताब के बारे में बताया कि इसकी लेखक पावनी ने राम के बदलते स्वरूप के साथ अपने बचपन के पुरूष दोस्तों के बदलने की दास्तान लिखी है। उन्होंने लिखा है कि जैसे विनयनत-शांत राम हाथ में तीर-कमान थामे एक गुस्सैल राम में बदल रहे हैं, साथ ही उनके साथ खेले गांव के लड़के भी ‘मैस्कुलिन सिक्स पैक पुरूष’ में बदल रहे हैं।
मुझे नाम के साथ विषय भी बड़ा रोचक लगा। साथ ही मेरे दिमाग में तुरंत हाल ही में चर्चा में आई बॉडीबिल्डर प्रिया सिंह मेघवाल याद आयी, जिन्होंने जब अपना ‘सिक्स पैक’ बनाया तो समाज ने उनका मज़ाक बनाया, सरकार की ओर से उन्हें उपेक्षा मिली और मार्कण्डेय काटजू जैसे प्र्रगतिशील सोच वाले सुप्रीम कोर्ट के पूर्व चीफ जस्टिस ने प्रिया की सिक्स पैक वाली इमेज को ‘बेहूदा’ तक कहा। मैंने पावनी से इजाज़त ली कि मैं प्रिया पर लिखूंगी और उसका टाइटिल ‘सिक्स पैक सीता’ रखूंगी। उसने खुशी-खुशी इजाज़त दे दी।
कल जब देश की ख्यातिनाम महिला पहलवालों को भाजपा सांसद और भारतीय कुश्ती संघ के अध्यक्ष बृजभूषण सरण सिंह के यौन उत्पीड़न के खिलाफ जंतर-मंतर पर धरना देते देखा, तो लगा कि राम की तरह सीता अगर अपना “सिक्स पैक” बनाना चाहे तो उसे कितनी अधिक मुश्किलों से गुजरना पड़ता है।
प्रिया सिंह मेघवाल बीबीसी को दिये गये अपने एक इण्टरव्यू में बताती हैं कि महिला को सिक्स पैक बनाने के लिए पुरूषों के मुकाबले तीन गुना अधिक डाइट, तीन गुना अधिक एक्सरसाइज और तीन गुना अधिक प्रोटीन की ज़रूरत पड़ती है। भारत के सन्दर्भ में इसमें यह भी जुड़ जाता है कि उसे पुरूषों के मुकाबले कई-कई गुना अधिक मानसिक मजबूती की जरूरत होती है, ताकि वे पुरूषों के घटिया कारनामों और पुरूषवादी टिप्पणियों को झेल सके।

एक और घटना भी बताना चाहूंगी, ये समझने के लिए कि मैं इन लड़कियों को “सीता” क्यों कह रही हूं। मेरी एक मित्र भारतीय विश्वविद्यालयों में लैंगिक समानता पर अध्ययन कर रही है। वो एक बार इलाहाबाद विवि में गिरिश चन्द्र त्रिपाठी का इण्टरव्यू करने गयी, क्योंकि वे उस समय बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के कुलपति थे, 2017 में जब लड़कियों ने वहां के पितृसत्तात्मक माहौल के खिलाफ महत्वपूर्ण आन्दोलन किया था। उनके कमरे में जाते ही उसने देखा कि वह छात्रों से नहीं, बल्कि भगवाधारी साधुओं से भरा हुआ था। थोड़ी देर के इन्तज़ार के बाद उन्होंने अपनी बात की शुरूआत यहां से की कि ‘देखिये भारत में हमेशा से नारियों का सम्मान होता रहा है…. देखिये हमारे यहां तो नारियों के नाम को भी पुरूषों से आगे रखा जाता है, हम तो पहले राधे फिर श्याम’ बोलते हैं हम पहले सीता फिर राम बोलते हैं। हमारे यहां हर पुरूष राम और हर स्त्री सीता है, यही हमारी संस्कृति है। हमारे यहां हर जगह लैंगिक समानता है।’’

उनके कथनानुसार जंतर मंतर पर धरने पर बैठी सभी चैंपियन पहलवान लड़कियां और प्रिया सिंह मेघवाल भी सीता है। बेशक उन्होंने पुरूषों की दुनिया में कदम रखकर उन्हें चुनौती दी है, लेकिन प्रिया का इण्टरव्यू बताता है कि उनमें वास्तव में काफी ‘सीता’ है। प्रतियोगिता में जाने के लिए उन्होंने घर में इजाज़त ली। बिकनी या कास्ट्यूम के पहनने के बारे में उन्होंने घर में इजाज़त ली। घर में रहने पर वे हाथ भर-भर चूड़ियां पहनती हैं। वे अपने चेहरे को ही घूंघट में छिपाकर नहीं रखती, बल्कि मेहनत से बनाये गये सिक्स पैक को भी घाघरे-चोली में छिपा कर रखती हैं, जबकि मर्दों के लिए तो यह मेहनत हमेशा दिखाने की ही चीज़ है। प्रिया तीन बार राजस्थान विजेता और अन्तर्राष्ट्रीय विजेता हैं, लेकिन केन्द्र सरकार तो छोड़ दीजिये खुद उनकी राजस्थान सरकार तक ने उन्हें कोई सम्मान नहीं दिया। इसके पीछे उनका औरत होना और दलित औरत होना मुख्य कारण है। साक्षात्कार में प्रिया कहती है मेरे साथ भी बहुत कुछ गलत हुआ है, लेकिन बॉडी बनाने के बाद गलत करने की कोशिश करने वाले को वे पीट दिया करती हैं। लेकिन हर जगह तो ये संभव भी नहीं। भारतीय कुश्ती संघ के अंदर तक उनके साथ गलत हो सकता है।

जंतर-मंतर पर धरना दे रहे अन्तर्राष्ट्रीय पदक विजेता पहलवानों ने महिला पहलवानों की ओर से भारतीय कुश्ती संघ पर आरोप लगाया है कि वहां राष्ट्रीय कैम्पों में महिला पहलवानों के साथ यौन दुर्व्यवहार किया जा रहा है और इसमें संघ के अध्यक्ष भाजपा सांसद बृज भूषण सरन सिंह खुद भी शामिल हैं। यह सब पिछले कई सालों से चला आ रहा है।
प्रसिद्ध पहलवाल साक्षी मलिक, विनेश फोगाट, संगीता फोगाट और बजरंग पुनिया ने सभी पीड़ित महिला पहलवानों की ओर से जंतर-मंतर पर आकर बयान दिया, तब इस मामले को सरकार ने नोटिस लिया। इसके पहले महिलाओं ने खेल मंत्री, प्रधान मंत्री तक को कई पत्र लिखे पर कुछ भी नहीं हुआ। जंतर-मंतर पर प्रदर्शन के लिए आये पहलवानों ने बताया कि कोच और अध्यक्ष के खिलाफ आवाज़ उठाने वाली महिला पहलवानों ने प्रशिक्षण रोके जाने ही नहीं, बल्कि अपनी जान की सुरक्षा की भी चिंता जताई है, क्योंकि ये इतनी ऊंची पहुंच वाले लोग हैं कि कुछ भी कर सकते हैं इस मामले का क्या होगा कुछ कहा नहीं जा सकता। लेकिन ये ज़रूर है कि रामचरित मानस की सीता की तरह चुप रहने से तो ये स्थिति बेहतर है, कुछ हो न हो डर का लोड तो बदलेगा। अब तक डर का लोड सिर्फ सिक्स पैक बनाने वाली सीताओं पर था, अब कम से कम इन सीताओं का उत्पीड़न करने वाले रामों और रावणों में भी डर पैदा होगा।

हमारे देश में ‘सिक्स पैक राम’ बनना मुश्किल नहीं है, लेकिन ‘सिक्स पैक सीता’ बनना नामुमकिन जैसा काम है। वास्तव में सिक्स पैक बनाने के लिए लड़कियों को सबसे पहले सीता बने रहने की चिंता छोड़नी पड़ती है। प्रिया मेघवाल ने भी बताया कि पहले उन्होंने ये काम घर वालों से छिपा कर किया, सफलता मिलने के बाद घर में बताया। सीता बने रहकर यह संभव नहीं था। उन्होंने सिक्स पैक बनाने की यात्रा में बहुत कुछ सुना, बहुत कुछ सहा। जबकि लड़के राम बने रह कर भी सिक्सपैक बना सकते हैं। प्रिया सिंह मेघवाल के सिक्सपैक में सिर्फ उनके डोले शोले ही नहीं, उनका संघर्ष भी दिखता है, जब कोई उसे ‘बेहूदा’ कहता है, मज़ाक उड़ाता है, इससे सिर्फ और सिर्फ उस व्यक्ति की पितृसत्तात्मक-सामंती मानसिक बनावट का पता चलता है। जब कोई इन पहलवान बनती लड़कियों का यौन-उत्पीड़न और यौन हमले करता है, तो उसके अन्दर यह पितृसत्तात्मक विचार कूद रहा होता है कि कितनी भी मजबूत क्यों न हो जायं लड़किया, मर्दों के लिए मनोरंजन का साधन ही रहेगीं। वे जल्द से जल्द इस कुंठित विचार को मजबूत होती लड़कियों तक पहुंचाना चाहते हैं, ताकि वे उनके नीचे दबी रहें। लेकिन इनसे लड़ती-भिड़ती लड़कियां, हर चीज में तीन गुना अधिक मेहनत करती लड़कियां, अपनी मंजिल पर पहुंचती हैं। इसलिए जब भी किसी लड़की को‘सिक्सपैक ऐब’ में देखिये तो उसमें अपनी बेहूदगी नहीं, उसके सघर्षों की खूबसूरती को देखिये। सीता की छवि छोड़ कर जंतर मंतर पर धरना दे रही सिक्स पैक लड़कियों का समर्थन करना भी इस पितृसत्तात्मक समाज के खिलाफ खड़े होना है।
सीमा आज़ाद