वर्जिन : जयप्रकाश कर्दम की कहानी (पहली क़िस्त)
उन लड़कों की बातों के तेवर से अशोक को यह आभास हो गया था कि आने वाला समय सुनीता के लिए बहुत अच्छा नहीं है। उसके साथ कुछ भी हो सकता है। और यदि वह इसी तरह सुनीता के साथ स्कूल जाता रहा तो वह भी चपेट में आए बिना नहीं रहेगा। कई दिन वह इस बात को लेकर परेशान रहा और सोचता रहा कि वह क्या करे और क्या नहीं करे।
पितृसत्तात्मक दृष्टिकोण और जैनेन्द्र (विशेष सन्दर्भ-‘पत्नी’ कहानी)
आदित्य कुमार गिरि
शोधार्थी,कलकत्ता विश्वविद्यालय,. सम्पर्क : adityakumargiri@gmail.com
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“आज का साहित्य विमर्श स्त्री विमर्श के बिना पूरा नहीं होता,लेकिन ज्यादातर इसका रूप फैशन...
आपहुदरी : रमणिका गुप्ता की आत्मकथा -पहली किस्त
रमणिका गुप्ता
रमणिका गुप्ता स्त्री इतिहास की एक महत्वपूर्ण दस्तावेज हैं . वे आदिवासी और स्त्रीवादी मुद्दों के प्रति सक्रिय रही हैं . 'युद्धरत...
एक विदुषी पतिता की आत्मकथा
इस मायने में दोनों ग्राहक हैं औरत और मर्द जो उत्तेजनाओं को बैलेंस करने के लिए एडजेस्टिव बिहैवियर की तलाश में अगर जा सकें तो सेंसेसरी डिसऑर्डर होने से बचा जा सकता है. बेस्ट सोशल ऑर्डर और बेहतर उत्पादन हो सकता है. अन्तःग्राहक इनके भीतरी इलाके में सें सोरी चैनल और सेन्सस ओर्गंस को बेहतर तरीके से मुकम्मिल रिजल्ट्स दे सकते हैं. सेंसेसंस के इन घटकों में औरतें और मर्द दोनों में ही क्वालिटी, इन्टेनसिटी और विविदनेस के कारण मेंटल इम्प्रेसंस का क्वांटीटेटीव इफेक्ट समझा जा सकता है.
अथ (साहित्य: पाठ और प्रसंग)
अनुपमा शर्मा
दिल्ली विश्वविद्यालय की शोधार्थी। कविताएं, समीक्षाएं, आलेख-पाठ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित।सम्पर्क : anupamasharma89@gmail.com
पिछले दिनों आलोचक राजीव रंजन गिरि की पुस्तक ‘अथ (साहित्य :...
स्त्री यौनिकता से भयभीत हिन्दी आलोचना और ‘उर्वशी’
'उर्वशी' की ख्याति काम को प्रधान विषय बनाने के कारण है लेकिन इसका सबसे कमजोर पक्ष काम को आध्यात्मिक रंगत दे देना है। कवि अगर भौतिक सुख की विशेषकर संभोग और रति सुख को ही अपने काव्य का विषय बनाता है तो रचना श्रेष्ठ नहीं कहलाएगी, कहीं न कहीं रचनाकार की चेतना में यह भाव है।
हिंदी उपन्यास और थर्ड जेंडर
भावना मासीवाल
भावना मासीवाल महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय में शोध छात्रा हैं. संपर्क :bhawnasakura@gmail.com;
हमारा पूरा समाज दो स्तम्भों पर खड़ा है...
मेरी माँ मेरा आदर्श..!
इंदिरा जी के इस कथन से सीख लेते हुए कि “राजनीति में अगर रहना है तो टीका-टिप्पणी, निंदा, सहन करने की और पचाने की क्षमता होनी चाहिए” माँ ने जीवन के कटु-अनुभवों से सिख लेते हुए हर स्थिति का सामना करने की शक्ति प्राप्त की. जब मैं जिला परिषद् की अध्यक्षा बनी तो भी उन्होंने मुझे यही समझाया कि ‘किसी का बुरा मत करना. नेकी कर दरिया में डाल’ उनका कहना है कि गरीब के सेवा से ही भगवान की पूजा हो जाती है.
एक विदुषी पतिता की आत्मकथा: दूसरी क़िस्त
कुमारी (श्रीमती) मानदा
देवी
अनुवाद और सम्पादन: मुन्नी गुप्ता
1929 में मूल बांग्ला में
प्रकाशित किताब “शिक्षिता पतितार आत्मचरित”, का हिन्दी अनुवाद एवं
सम्पादन...
आपहुदरी : रमणिका गुप्ता की आत्मकथा : दूसरी किस्त
रमणिका गुप्ता
रमणिका गुप्ता स्त्री इतिहास की एक महत्वपूर्ण दस्तावेज हैं . वे आदिवासी और स्त्रीवादी मुद्दों के प्रति सक्रिय रही हैं . 'युद्धरत...