यौन स्वतंत्रता, कानून और नैतिकता (अरविन्द जैन)
वर्तमान भारतीय समाज का राजनीतिक नारा है 'बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ', मगर सामाजिक-सांस्कृतिक आकांक्षा है 'आदर्श बहू'।वैसे भारतीय शहरी मध्य वर्ग को 'बेटी नहीं...
राम-अल्लाह वाले फर्जी पोस्ट की कैराना-सांसद ने की पुलिस में शिकायत,जांच के आदेश
स्त्रीकाल डेस्क
कैराना से नवनिर्वाचित सांसद तबस्सुम हसन ने शामली के पुलिस अधीक्षक को अपने नाम पर वायरल किये जा रहे पोस्ट के खिलाफ पत्र...
भारतीय लोक तंत्र मोदी को बदल देगा : कुलदीप नैयर
संजीव चंदन बातचीत, साथ में अरुण चतुर्वेदी
आज वरिष्ठ पत्रकार कुलदीप नैयर नहीं रहे, 95 वर्ष की उम्र में उनका निधन हो गया. 2014 में...
तानाशाह के खिलाफ वह खूबसूरत शख्सियत, हमें भी पढ़ा गयी पाठ!
संध्या नवोदिता
फहमीदा रियाज़ से मेरा पहला परिचय उनकी कविताओं से हुआ था। उनसे आमने-सामने मिलने से पहले उनकी नज़्में लाखों पाठकों की तरह मेरे...
बेटियों का नाम अनचाही, फालतू…. (बदलाव के दौर में रूढ़िवादी मानसिकता की शिकार...
मुजतबा मन्नान
हाल ही में एक खबर अखबारों की सुर्खियां बनी।दरअसल, मध्य प्रदेश के मंदसौर जिला मुख्यालय से करीब पैंतीस किलोमीटर दूर बिल्लौद गाँव में...
फूलन देवी की ह्त्या के लिए सजायफ्ता है सहारनपुर की घटना का मास्टरमाइंड
संजीव चंदन
सहारनपुर के शब्बीरपुर की घटना की कडि़यों को जोडने पर आभास होता है कि यह राजपूतों की तात्कालिक प्रतिक्रिया भर नहीं थी, बल्कि...
उस संस्थान में ब्राह्मणों की अहमियत थी
कुछ बड़ी कक्षाओं में जब स्कूल के फॉर्म हम खुद भरने लगे तो जाति का सर्टिफिकेट लगाने की बात आई और मुझे वह सर्टिफिकेट नहीं लगाना था, तब पता चला कि अच्छा यह कुछ 'खास जातियों'के लिए ही लगता है, लेकिन तब भी मन में किसी तरह का और कोई भाव नहीं था, वह एक दिन होता था जब फॉर्म भरे जाते और अपनी-अपनी जातियाँ लिखी जाती थीं, तमाम दूसरी औपचारिकताओं की तरह। लेकिन तब ये जरूर लगता कि फॉर्म में ये कॉलम नहीं होना चाहिए…न ये कॉलम होता न हमें हमारी जातियाँ पता चलतीं।
उन्हें लड़ना ही होगा अपने हिस्से के आसमान के लिए
निवेदिता
निवेदिता पेशे से पत्रकार हैं. सामाजिक सांस्कृतिक आंदोलनों में भी सक्रिय रहती हैं. हाल के दिनों में वाणी प्रकाशन से एक कविता संग्रह...
बीबीसी में जातिगत भेदभाव (आरोप)
"आप ही मीना हो?"
"हां, क्यों क्या हुआ?"
"नहीं कुछ नहीं, बस ऐसे ही."
"आपने इस तरह अचानक पूछा..? आप बताइए न किसी ने कुछ कहा क्या?"
"नहीं, नहीं कुछ ख़ास नहीं."
(थोड़ी देर बात कर उन्हें विश्वास में लेने के बाद)
"बताइए न मैं किसी को नहीं बताऊंगी."
"मुझसे किसी ने कहा था कि अब तो आपके लोग भी हमारे साथ बैठ कर काम करेंगे."
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यह सुन मैं थोड़ी देर शांत बैठ गई. मैंने उनसे जब पूछा कि आपको ये किसने कहा तो उन्होंने बताने से मना कर दिया.
बीबीसी में मेरी नौकरी करने के ऊपर की गई यह टिप्पणी किसने बताई, मैं उनका नाम जगजाहिर नहीं करना चाहती क्योंकि मैं नहीं चाहती मेरी वज़ह से किसी की नौकरी ख़तरे में पड़ जाए. लेकिन बताना चाहूंगी वो व्यक्ति दलित समुदाय से आते हैं और वे पत्रकार नहीं हैं. वो बीबीसी के दफ़्तर में एक साधारण कर्मी हैं.
पवित्र आराधना स्थल और अपवित्र महिलाएं
नेहा दाभाड़े
पवित्र धार्मिक स्थलों में प्रवेश के अधिकार पाने के लिए महिलाएं आंदोलनरत हैं। सबरीमला, शनि शिन्गनापुर और हाजी अली की दरगाह में महिलाओं...