राहुल की यात्रा क्या राजनीति का स्त्रीकरण कर रही है?

संजीव चंदन महात्मा गांधी ने भारत में पहली बार राजनीति का स्त्रीकरण किया।  भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में गांधी के 2015 में भारत लौटने से  पहले भी स्त्रियां थीं, लेकिन उनकी संख्या बेहद नगण्य थी और उनमें से ज्यादातर उच्च वर्ग की महिलायें थीं।  ऐसा भी नहीं था कि उच्च वर्ग की इन महिलाओं कोई योगदान नहीं किया अपने बाद की पीढ़ी के लिए राजनीतिक स्पेस तैयार करने में। वे बेहद प्रतिभा सम्पन्न महिलाएं थीं।  उन्होंने महिलाओं की शिक्षा के पक्ष में प्रयास किये और  महिलाओं का मताधिकार पाने में इन्होने सफलता पायी थी। मताधिकार और चुनाव लड़ने का अधिकार। राजनीति में महिलाओं के लिए व्यापक स्पेस, माहौल बनाने में महात्मा गांधी के राजनीतिक सिद्धांत ने महत्वपूर्ण योगदान दिया।  गांधी जब भारत में सक्रिय नहीं हुए थे तभी रवींद्रनाथ टैगोर का उपन्यास 1916 में आया था ‘घरे/ बाइयरे’। उपन्यास की नायिका बिमला घर के चौखटे से बाहर आकर स्वदेशी आंदोलन में हिस्सा लेती है। बंगाली महिलाओं ने उपनिवेश विरोधी सशस्त्र आंदोलनों में हिस्सा लिया था, लेकिन बिमला ने अहिंसक प्रतिरोध का रास्ता चुना। राजनीति का अहिंसक वातावरण महिलाओं के अनुकूल होता है। गांधी ने अहिंसा, सत्याग्रह को राजनीतिक मूल्य बनाकर राजनीति को घरेलू  महिलाओं के लिए भी अनुकूल किया। जिसके बाद सामान्य घरों से भी महिलाएं  राजनीति में भागीदार हुईं। घर के चौखटे से बाहर निकलीं।  इसे राजनीति के स्त्रीकरण की तरह देखा गया। लगभग सौ साल बाद फिर से महिलाएं, युवा, बुजुर्ग, हर समूह से राहुल गांधी के साथ भारत जोड़ो यात्रा में शामिल हैं। यह उस वक्त हो रहा है जब लोकसभा में आज अधिकतम 14 % महिलाएं हैं।।  यह उस वक्त हो रहा है जब लोकसभा में आज अधिकतम 14 % महिलाएं हैं।  कई राज्यों की विधानसभाओं में वह प्रतिशत और भी कम है। यह ऐसे समय में भी हो रहा है जब राजनीति को घिनौना, हिंसक, भ्रष्ट रूप में देखा जा रहा है। इसलिए, महिलाओं के लिए भारत जोड़ो यात्रा में चलने वाले ज्यादातर पुरुषों के साथ शामिल होना महत्वपूर्ण है, हालांकि 30 प्रतिशत महिलाएं इस यात्रा में शामिल बतायी जाती हैं। राहुल गांधी के बारे में जो ख़बरें यात्रा से आ रही हैं या जो तस्वीरें बाहर आ रही हैं, उनका असर भारतीय राजनीति पर व्यापक होने वाला है।  बशर्ते राहुल एक राजनीतिक इच्छाशक्ति के साथ इस दिशा में काम करते हैं।  फिलहाल तो इन तस्वीरों से राजनीतिक स्पेस और भाषा के स्त्रीकरण की दूसरी परिघटना घट रही है भारतीय राजनीति में...

क्यों अनंतपुर के पक्षियों और ग्रासलैंड के लिए खतरा हैं पवन चक्कियां

  क्यों अनंतपुर के पक्षियों और ग्रासलैंड के लिए खतरा हैं पवन चक्कियां आंध्र प्रदेश का अनंतपुर जिला राजस्थान के जैसलमेर के बाद भारत का...

नागरिकता, समता और अधिकार के संघर्ष अभी जारी हैं

आधुनिक भारत के  निर्माण में  आज़ादी से पहले  और आजादी के बाद के तमाम जनांदोलनों की बहुत महत्वपूर्ण भूमिका रही है और इन आंदोलनों में  महिलाओं  की  भागीदारी  और ज्यादा  महत्वपूर्ण  है। साथ...

बहुरिया रामस्वरूप देवी

प्रियंका प्रियदर्शिनी बिहार बलिदान की वह ऐतिहासिक धरती है जिसने जंग-ए-आज़ादी में ईंट का जबाब पत्थर से दिया है। आज़ादी के दीवानों ने गांधी के...

प्रोफ़ेसर रतनलाल की रिहाई!

यह आंबेडकरवाद और एकजुट लड़ाई की जीत है एच. एल. दुसाध  सत्ता का रवैया देखते हुए...

प्रधानमंत्री को पत्र लिखना हुआ गुनाह: 6 बहुजन छात्र निष्कासित

ये सिलसिला आगे बढ़ता है जब महात्मा गाँधी अन्तर्राष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय वर्धा के प्रशासन ने छह विद्यार्थियों को निष्काशित कर दिया जाता है, चन्दन सरोज, नीरज कुमार, राजेश सारथी, रजनीश अम्बेडकर, पंकज वेला और वैभव पिंपलकर इन लोगों ने इस अलोकतांत्रिक कार्रवाई का विरोध करते हुए 9 अक्टूबर को विश्वविद्यालय में प्रधानमंत्री को पत्र लिखने का सामूहिक कार्यक्रम आयोजित किया जिसमें छात्र-छात्राओं ने अपने पत्र में पीएम मोदी प्रधानमंत्री से देश के मौजूदा हालात को देखते हुए कुछ सवालों का जवाब मांगा है. छात्र-छात्राओं ने देश में दलित-अल्पसंख्यकों के मॉबलिंचिंग से लेकर कश्मीर को पिछले दो माह से कैद किए जाने; रेलवे-बीपीसीएल-एयरपोर्ट आदि के निजीकरण; दलित-आदिवासी नेताओं, मानवाधिकार कार्यकर्ताओं एवं बुद्विजीवी- लेखकों के बढ़ते दमन और उनपर देशद्रोह का मुकदमा दर्ज करने पर भी सवाल खड़े किए हैं. छात्र-छात्राओं ने महिलाओं पर बढ़ती यौन हिंसा व बलात्कार की घटनाओं के सवाल पर भी जवाब माँगा है. क्या ये सवाल जायज नहीं है? इन सवालों से देश की छवि खराब हो जाएगी?

ब्राह्मणवादी पितृसत्ता पर बहुजन लेखिकाओं ने की बातचीत: बहुजन साहित्य संघ का आयोजन

अनीता मिंज जी ने यह बताया कि किस प्रकार आदिवासी स्त्रियों की स्वतंत्रता का अर्थ सिर्फ़ दैहिक सम्बन्ध तक सीमित समझ लिया जाता है जबकि वह अपनी स्वतंत्रता को जीती हैं । उनके रोजमर्रा के अभ्यास में यह शामिल होता है । वह मुख्यधारा की स्त्रियों से ज़्यादा स्वतंत्र और आत्मनिर्भर हैं, यहाँ उस प्रकार की समस्याएँ नहीं हैं जो दलित स्त्रियों की समस्याएँ हैं ।

अमेज़न क्यों जला?

आज दुनिया भर में आदिवासियों पर खतरा मंडरा रहा है पूंजीवादी सत्ता का. भारत में ब्राह्मणवादी व्यवस्था पहले से ही आदिवासीयों को हिन्दू बता कर उनकी संस्कृति उनकी पहचान को ख़त्म कर रही है और आरएसएस बीजेपी जैसे ब्राह्मणवादी फासीवादी हिन्दूवादी संगठन आक्रामक रूप से उनको शारीरिक और मानसिक रूप से ख़त्म करने की प्रक्रिया में है. जिसे हम जंगल, नदी, पहाड़ों के रखवाले के तौर पर जानते हैं क्या वो थे में बदल जायेंगे?

खौफ और आशंकाओं में जी रहे कश्मीर के लोग, नाबालिगों और महिलाओं पर भी...

श्रीनगर के एक लल्ला डेड महिला अस्पताल में कई युवा महिला डॉक्टरों ने अनुच्छेद 370 के निरस्त होने के बाद से उन बाधाओं पर अपनी पूरी निराशा व्यक्त की वहां कई ऐसे मामले हैं महिलाएं प्रसव के लिए समय पर नहीं आ सकती हैं। बहुत कम एम्बुलेंस हैं; जो एम्बुलेंस चल रहा होता है उन्हें रास्ते में ही पिकेट पर रोक दिया जाता है। प्रसव के कई मामले ऐसे हैं अच्छे से इलाज नहीँ होने के कारण बच्चे विकृति के साथ जन्म जन्म ले रहे हैं. यह उनके माता-पिता को आजीवन कष्ट दिया जा रहा है। वर्तमान स्थिति में तनाव और खौफ (भय) के कारण कई महिलाएं समय से पहले बच्चों को जन्म दे रही हैं। एक युवा महिला चिकित्सक ने दुख के साथ हमें बताया ऐसा लगता है कि सरकार हमारा गला घोंट रही है.

डीयू (DU) प्रशासन का महिला विरोधी और अमानवीय व्यवहार

एक महिला जो कि बीमार है, जिस पर वह पीरियड में भी है क्या उसकी मूलभूत सुविधाओं को ध्यान नहीं रखना चाहिए? क्या उस अकेली लड़की से इस व्यवस्था को इतना डर था कि उसको बाहर ही रखा गया। जबकि उसकी स्थिति खराब थी? यदि कोई आ जा नहीं सकता तो इनके जानने वाले लोग हम तक कैसे पहुँच गए। यदि यहाँ से यानी इस फ्लोर से बाहर जाना ही आंदोलन को खत्म करना माना जा रहा है तो रात में मीडियाकर्मियों के आने पर हमपर नीचे आने का दवाब क्यों बनाया गया। वह लड़की रात 11 बजे यहां से अकेले गई, यदि उसको कुछ हो जाता तो उसका जिम्मेदार कौन होता।

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